आज के दौर में
रिश्तों के मायने बदल गए
कल तक जो अपने थे
वो पराए हो गए
पैसे की चाहतों में
सब भूल कर बैठे
जिन रिश्तों में जिंदगी थी
उन्हें दूर कर बैठे
चारपाई पर लेट कर
बीते लम्हों को याद करते हैं
जो गुजरा है जमाना
उन लम्हों की बात करते हैं
समय के धुंध में
रिश्ते भी धुंधले हो गए
बीता जिन रिश्तों में
था बचपन कभी
बदलते दौर के साथ
बदले रिश्ते सभी
आज जब भी वो
बीते दिनों को याद करते हैं
पलकों में छुपे उनके
आंसू निकल पड़ते हैं
जो रिश्तों की बगिया में
बिताया करते थे पल
न जाने कैसे भूल जाते हैं
अपना बीता हुआ कल
***अनुराधा चौहान***
Good nice thought
ReplyDeleteधन्यवाद दी
Deleteसही कहा हर घडी बदलते हैं स्वार्थ के रिश्तों के मायने ।
ReplyDeleteअप्रतिम रचना।
बहुत ही प्यारी रचना
ReplyDeleteधन्यवाद शकुंतला जी
Deleteवाह !!! बहुत सुन्दर... सार्थक रचना 👌👌👌
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार नीतू जी
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