कहीं आंधी चले ओले गिरे
कहीं सूखे की पड़ती मार
और प्रकृति करे पुकार
इसका मानव जिम्मेदार
सूखती नदियां गिरता जलस्तर
डोलती धरती बारम्बार
यह प्रकृति करे पुकार
इसका मानव जिम्मेदार
कटते पेड़ उजड़ते जंगल
छिन रहा धरती का श्रृंगार
यह प्रकृति करे पुकार
इसका मानव जिम्मेदार
संभल जाओ नहीं तो पछताओगे
पीने का जल कहां से लाओगे
यह प्रकृति करे पुकार
अब तो रुक जा तू इंसान
दिन पर दिन बढ़ता प्रदूषण
करता आसमां का सीना छलनी
यह प्रकृति करे पुकार
इसका मानव जिम्मेदार
कंक्रीटों के बढ़ते जंगल
करते पर्यावरण पर मार
इसलिए यह प्रकृति करे पुकार
अब तो रुक जा तू इंसान
अब तो रुक जा तू इंसान
***अनुराधा चौहान***
कहीं सूखे की पड़ती मार
और प्रकृति करे पुकार
इसका मानव जिम्मेदार
सूखती नदियां गिरता जलस्तर
डोलती धरती बारम्बार
यह प्रकृति करे पुकार
इसका मानव जिम्मेदार
कटते पेड़ उजड़ते जंगल
छिन रहा धरती का श्रृंगार
यह प्रकृति करे पुकार
इसका मानव जिम्मेदार
संभल जाओ नहीं तो पछताओगे
पीने का जल कहां से लाओगे
यह प्रकृति करे पुकार
अब तो रुक जा तू इंसान
दिन पर दिन बढ़ता प्रदूषण
करता आसमां का सीना छलनी
यह प्रकृति करे पुकार
इसका मानव जिम्मेदार
कंक्रीटों के बढ़ते जंगल
करते पर्यावरण पर मार
इसलिए यह प्रकृति करे पुकार
अब तो रुक जा तू इंसान
अब तो रुक जा तू इंसान
***अनुराधा चौहान***
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