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Tuesday, May 29, 2018

ख्वाहिशों का मकड़जाल

हम सभी ख्वाहिशों के मकड़जाल में
इस तरह उलझे हुए हैं 
उनसे बाहर आना मुश्किल है
ख्वाहिशें हमारे जन्म के साथ
जुड़ना शुरू हो जाती हैं
पैदा होते ही हम बच्चों के साथ
अपनी ख्वाहिशें जोड़ देते हैं
मेरा बच्चा बड़ा होकर
डाक्टर या इंजीनियर बनेगा
एक बच्चे के रूप में
हमारी ख्वाहिश होती है 
हमारे मां बाप हमारी
हर जिद्द पूरी करे
मां की यह ख्वाहिश होती है
बेटी को ऐसा ससुराल मिले
जहां वह राज करें
बहू से यह ख्वाहिश होती है
वह घर का पूरा काम करे
हम बेटों से यह ख्वाहिश रखते हैं
वह हमारे लिए श्रवण कुमार बने
जो हम चाहते हैं वो करें
हमारी सभी ख्वाहिशों को पूरा करें
हर कोई अपनों की
ख्वाहिशों को पूरा करने में लगा हुआ है
पर ख्वाहिशे हैं कि पूरा होने का
नाम नहीं लेती
भिखारी की ख्वाहिश की
वह राजा बन जाए
राजा की ख्वाहिश होती है
वह पूरी दुनिया पर राज्य करे
जिंदगी कम पड़ जाती है
पर ख्वाहिशें कभी खत्म
नहीं होती नित नई ख्वाहिश
जन्म लेती रहती है
उन्हें पूरा करने के लिए 
मेहनत भी करनी होगी
तभी हम ख्वाहिशों को
कर सकते हैं पूरा
ख्वाहिशे पालने से कुछ न होगा
इनके मकड़जाल से बाहर
निकल कर कर्म करना होगा
***अनुराधा चौहान***

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