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Wednesday, May 23, 2018

बेटी का दर्द

न गोद में उठाया
न सीने से लगाया
बेटी थी आपकी
फिर भी ठुकराया
बाबा ने किया अनदेखा
दादी ने रुलाया
देख नफरत इनकी
मन मेरा घबराया
सोचा मां की ममता की
छांव में जी लूंगी
बेटी हूं मैं यह दर्द पी लूंगी
अपनाएंगे सब
एक दिन यह सोचकर
चिपक मां के
सीने से सोई थी मैं
आंखें खुली
तो बहुत रोई थी मैं
कचरे का ढेर
अजनबी आसपास
ताक रही आंखें
कहां मेरे मां बाप
भूल क्या हूई
जिसकी सजा मिली
अंश आपका थी
आज कचरा हूई..
 ***अनुराधा चौहान***

8 comments:

  1. मार्मिक रचना
    यही तो हो रहा है
    आज....
    सादर

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  2. ब्लॉग फॉलेव्हर का गेजेट लगाइए
    सादर

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    1. जी अवश्य सादर आभार आपका यशोदा जी

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  3. मर्मस्पर्शी रचना दारूण यथार्थ ।

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  4. सादर आभार कुसुम जी

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  5. Yah ek hakikat hai jis tarah se nanhi beti janm dekar fek di jati hai yah hmare desh ke liye kalank hai maa ki mmta mar gyee hai logo ke dusit vichar aaj beti ke prati jo anyay ho rha h vah bahut hi dukhdai hai smaj me savi ko jine ka hak hona chahiye aaj bhi aurato ko samman nahi diya jata hai kitne kanun bn gye hai per sudhar bahut km hua h eske liye women ko hi padh likhkar aage aana hoga jb women ka sath women degi tavi desh me sudhar hoga Kavi saas bnkar bahu ka sath de aur kavi maa bnkar beti ki jaan bachye

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  6. कानून तो कई बने पर जब तक बेटी के प्रति लोगों में जागरूकता नहीं आएगी तब तक कोई कानून कुछ नहीं कर सकता बेटी घृणा का पात्र नहीं सम्मान का प्रतीक है सोच बदलेगी देश बदलेगा आभार आदरणीय

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