Followers

Friday, June 29, 2018

नहीं भूल सकती

(चित्र गूगल से साभार)
आज फिर तेरी यादों का
समंदर लहराने लगा
दिल में सोया हुआ
वह खौफनाक मंजर
फिर जगाने लगा
यह भयानक हवाएं
यह काली घटाएं
देख दर्द का सैलाब
मेरी आंखों से आने लगा
नहीं भूल पाती में
तेरी आंखों के आंसू
वो तड़प वो पीड़ा
जिन्हें तूने झेला
भयावह वह मंजर
थी नियति भी सहमी
रूह तेरे जिस्म से
अब निकलने लगी थी
थे बेबस और लाचार
हम सिसकने लगे थे
द्रवित होकर आसमां भी
अब रोने लगा था
तुझे लेने आगोश में
थी हवाएं भी आतुर
नहीं भूल सकती
भयावह वह मंजर
यह दुःख का समंदर
जो बसा हुआ है
मेरे मन के अंदर
नहीं भूल सकती में
नहीं भूल सकती
***अनुराधा चौहान***

14 comments:

  1. बहुत खूबसूरत
    बेहतरीन

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर आभार लोकेश जी

      Delete
  2. दिल में दर्द का समंदर
    नहीं भूलता वह मंजर
    मर्मस्पर्शी रचना 🙏

    ReplyDelete
  3. दर्द के समुन्दर सूखते नहीं न ही यादों से जाते हैं ...
    निकल आते है यदा कदा दिल के मुहाने ... बहुत दर्द भरी रचना है ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. सही कहा आपने दिगंबर जी सादर आभार

      Delete
  4. अवश्य यशोदा जी सादर आभार

    ReplyDelete
  5. दर्द की इंतहा ।
    अप्रतिम ।

    ReplyDelete
  6. वाह!!बहुत खूब!!

    ReplyDelete
  7. नहीं भूल पाती में
    तेरी आंखों के आंसू
    वो तड़प वो पीड़ा
    जिन्हें तूने झेला
    भयावह वह मंजर...
    निःशब्द नमन आपकी रचनाशीलता को... अप्रतिम

    ReplyDelete
  8. बहुत ही सुन्दर रचना सखी 👌

    ReplyDelete