Followers

Saturday, June 2, 2018

समय की बलिहारी


(चित्र गूगल से संगृहीत)
जैसे-जैसे समय बीतता जाता अपने साथ कुछ न कुछ ले जाता हमारे रिश्ते हमारी नई पीढ़ी के संस्कार सब इस बदलते वक्त की भेंट चढ़ गए। कुछ घरों में इस तरह के बदलाव देखने को मिलते हैं
   यह कैसी बलिहारी समय की
   यह कैसी बलिहारी
   घर में मां बाप भूखे सोते
   बच्चे बाहर मौज करें
   इतनी पीड़ा दे
  अपने जनक को
  कैसे उनको चैन पड़े
  फेसबुक पर ज्ञान बिखेरते
  फादर डे,मदर डे
  सेलिब्रेट करें
  घर पर दो घड़ी वक्त नहीं
  बैठ कर उनसे बात करें
  कैसे तुमको पाल-पोस कर
  उन्होंने इतना बड़ा किया
  अपनी शानो-शौकत की खातिर
  तुमने उन्हें भुला दिया
  कल तुम भी मां बाप बनोगे
  इस बात का ध्यान करो
  इतिहास खुद को दोहराता है
  इसलिए उनका सम्मान करो
      ***अनुराधा चौहान***

12 comments:

  1. विडम्बना है ये समय की या संस्कारों नही पता बस समय नैतिकता को गर्त मे धकेल रहा है भौतिक वाद सर चढ़ बोल रहा है पाश्चात्य संस्कृति संस्कारों वाले देश मे नाच रही है।
    यथार्थ रचना सार्थक संदेश देती, चिंतन देती ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद कुसुम जी में आपके विचारों से सहमत हूं

      Delete
  2. विचारणीय सुंदर रचना
    वाह 👌
    बढ़ते समय के साथ घटते संस्कार बेहद चिंता का विषय है

    ReplyDelete
    Replies
    1. सत्य कहा आंचल जी आपने सादर आभार

      Delete
  3. वर्तमान स्थितियों को आइना दिखती रचना चिंतनीय विषय है ..

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद सुप्रिया जी

      Delete
  4. ये आज का समय है ... जिसको कोई जान महि पाता ।।।
    बढ़िया रचना है .।।

    ReplyDelete
  5. यथार्थ से रूबरू करती रचना
    बहुत सुंदर

    ReplyDelete