धूप छांव सी है यह जिंदगी।
कहीं गरीबी से त्रस्त
कहीं मंहगाई से पस्त
कहीं महलों में मस्त हैं जिंदगी
धूप छांव सी है यह जिंदगी।
कहीं भाईचारे को डसती
कहीं इंसानियत है मरती
कहीं झूठे दिखावे की जिंदगी
धूप छांव सी है यह जिंदगी।
कहीं स्वीमिंगपूल में तैरती
कहीं नदियों को गंदा करती
कहीं बूंद बूंद को तरसे है जिंदगी
धूप छांव सी है यह जिंदगी।
कहीं जातिवाद के लिए मरती
कहीं आरक्षण के लिए लड़ती
कहीं देश पर कुर्बान होती जिंदगी
धूप छांव सी है यह जिंदगी।
***अनुराधा***
कहीं गरीबी से त्रस्त
कहीं मंहगाई से पस्त
कहीं महलों में मस्त हैं जिंदगी
धूप छांव सी है यह जिंदगी।
कहीं भाईचारे को डसती
कहीं इंसानियत है मरती
कहीं झूठे दिखावे की जिंदगी
धूप छांव सी है यह जिंदगी।
कहीं स्वीमिंगपूल में तैरती
कहीं नदियों को गंदा करती
कहीं बूंद बूंद को तरसे है जिंदगी
धूप छांव सी है यह जिंदगी।
कहीं जातिवाद के लिए मरती
कहीं आरक्षण के लिए लड़ती
कहीं देश पर कुर्बान होती जिंदगी
धूप छांव सी है यह जिंदगी।
***अनुराधा***
बहुत उम्दा
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteधन्यवाद
ReplyDeleteवाह बहुत सुन्दर रचना।
ReplyDeleteधन्यवाद सखी 🙏
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