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Sunday, June 17, 2018

विरह की अग्नि

सोचा भी न था कभी
जिंदगी में ऐसा भी
वक्त आएगा
सब कुछ तबाह कर
हमारी खुशियां
साथ ले जाएगा
खेलते कूदते बड़े हुए थे
जिसके साथ
वो भाई हमसे बिछड़ जाएगा
जिंदगी मिली है
तो जीना पड़ेगा
दर्द तेरी जुदाई का
सहना भी पड़ेगा
किस लम्हे में तुझको भूलूं
किस लम्हे में न याद करूं
भाई बता में तेरे बिन
कैसे खुश रहने का प्रयास करुं
बंद मुट्ठी के जैसे थे हम
तुम क्यों मुट्ठी खोल गए
मां बाप सहित हम सबको
विरह की अग्नि में
जलता छोड़ गए
 ***अनुराधा चौहान***
           
     
        

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