हवाओं को रोकती
यह ऊंचीअट्टालिकाएं
सांप सी फैली
सड़कों का जाल
जिंदगी को है डस रहीं
हवाओं में जहर घोलती
गाड़ियां हैं दौड़ रहीं
नित नई बीमारी को
वो जन्म दे रही
रसायनिक मिलावट से
दूषित होते खाद्य पदार्थ भी
पर्यावरण को स्वच्छ बनाते
पेड़ निरंतर कट रहे
नदी नाले पाट कर
उन पर बंगलें बन रहे
अब भी न चेता इंसान
तो वो दिन दूर नहीं
स्वच्छ हवा और पानी को
जब पल पल तरसे
यह जीवन
***अनुराधा चौहान***
यह ऊंचीअट्टालिकाएं
सांप सी फैली
सड़कों का जाल
जिंदगी को है डस रहीं
हवाओं में जहर घोलती
गाड़ियां हैं दौड़ रहीं
नित नई बीमारी को
वो जन्म दे रही
रसायनिक मिलावट से
दूषित होते खाद्य पदार्थ भी
पर्यावरण को स्वच्छ बनाते
पेड़ निरंतर कट रहे
नदी नाले पाट कर
उन पर बंगलें बन रहे
अब भी न चेता इंसान
तो वो दिन दूर नहीं
स्वच्छ हवा और पानी को
जब पल पल तरसे
यह जीवन
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार |
हर शब्द अपनी दास्ताँ बयां कर रहा है आगे कुछ कहने की गुंजाईश ही कहाँ है बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आपका
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२३ मार्च २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
वाह बेहतरीन सृजन सखी।बहुत सुंदर।
ReplyDeleteवाह!सखी ,बहुत सुंदर सृजन । सही है हमें जल्दी ही चेतना होगा ।
ReplyDeleteकैमिकलों की मिलावट है असली मिलावट है।
ReplyDeleteचेतना तो है अब।
सुंदर रचना।