कागज के टुकड़ों के लिए
दो इंसानों में बहस छिड़ी
मोहब्बत का मोल नहीं
दौलत ही इस दुनियाँ में बड़ी
सुनकर उनकी बकवास
लोगों को आ रहा था मज़ा
बढ़ रहा थी भीड़ बड़ी
निकल नहीं रहा नतीजा
एक बुजुर्ग ने आकर बोला
क्यों करते हो झमेला
तुम मोहब्बत बांटो
और तुम पैसा बांटो
जिसके पास जमा हो
इंसानों की भीड़
वहीं आदमी इस दुनियाँ में
सबसे ज्यादा अमीर
सुन कर बुजुर्ग की बातें
लगे दोनों किस्मत आजमाने
कागज के नोटों को जिसने बांटा
उसके पास लगा इंसानों का मेला
मोहब्बत बांटने वाला इंसान
रह गया बिल्कुल अकेला
कागज के टुकड़ों की है
लोगों यह दुनियाँ दीवानी
प्यार, अपनेपन की भाषा
कहाँ किसको समझ है आनी
कागज के टुकड़ों को लिए ही
चारों और हमेशा जंग है छिड़ती
राजनीति हो या आम ज़िंदगी
इंसानियत ही हरदम मरती
***अनुराधा चौहान***मेरी स्वरचित रचना ✍
चित्र गूगल से साभार
दो इंसानों में बहस छिड़ी
मोहब्बत का मोल नहीं
दौलत ही इस दुनियाँ में बड़ी
सुनकर उनकी बकवास
लोगों को आ रहा था मज़ा
बढ़ रहा थी भीड़ बड़ी
निकल नहीं रहा नतीजा
एक बुजुर्ग ने आकर बोला
क्यों करते हो झमेला
तुम मोहब्बत बांटो
और तुम पैसा बांटो
जिसके पास जमा हो
इंसानों की भीड़
वहीं आदमी इस दुनियाँ में
सबसे ज्यादा अमीर
सुन कर बुजुर्ग की बातें
लगे दोनों किस्मत आजमाने
कागज के नोटों को जिसने बांटा
उसके पास लगा इंसानों का मेला
मोहब्बत बांटने वाला इंसान
रह गया बिल्कुल अकेला
कागज के टुकड़ों की है
लोगों यह दुनियाँ दीवानी
प्यार, अपनेपन की भाषा
कहाँ किसको समझ है आनी
कागज के टुकड़ों को लिए ही
चारों और हमेशा जंग है छिड़ती
राजनीति हो या आम ज़िंदगी
इंसानियत ही हरदम मरती
***अनुराधा चौहान***मेरी स्वरचित रचना ✍
चित्र गूगल से साभार
कागज के नोटों को जिसने बांटा
ReplyDeleteउसके पास लगा इंसानों का मेला
मोहब्बत बांटने वाला इंसान
रह गया बिल्कुल अकेला....
बहुत सही लिखा है आपने । अक्सर बेसकीमती चीजें आँखो के सामने होकर भी नजरों से ओझल रहती हैं । विरले ही इसकी कीमत जानते हैं और भाग्यशाली कहे जाते हैं । सुन्दर रचना हेतु बधाई व शुभकामनाएं ।
बहुत बहुत आभार आदरणीय
Deleteबहुत सुन्दर रचना सखी
ReplyDeleteसादर
धन्यवाद सखी
Deleteबहुत सही .....मोहब्बत बांटने वाला इंसान
ReplyDeleteरह गया बिल्कुल अकेला....
धन्यवाद आदरणीय
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