यह चुभती-सी नजर
भेदती हैं तन को
करती छलनी मन को
कुछ टटोलती-सी
हर नारी के देह को
एक अजीब-सा भाव
यह चुभती-सी नज़रें
आत्मा को घायल करती
हर गली हर चौराहे पर
चेहरे पर कुटिल मुस्कान
यह चुभती-सी नजरें
व्यथित करती मन
नजरंदाज कर देते सब
इनके बेढंग रवैए को
इसलिए ले बुलंद
हौसलें अपने
यह करते हुड़दंग हैं
मासूमों की ज़िंदगी
से खेल जाते
कर देते उनकी
अस्मत को तार-तार
खुलेआम धज्जियां उड़ाते
हर नियम हर कानून की
कल भी यही था
आज भी वही ढंग है
कमी समाज की सोच की
और इनके संस्कारों की
ना हीं इनके कुकर्मों पर
किसी की नज़र है
और ना ही इन्हें
किसी का रहता डर है
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
भेदती हैं तन को
करती छलनी मन को
कुछ टटोलती-सी
हर नारी के देह को
एक अजीब-सा भाव
यह चुभती-सी नज़रें
आत्मा को घायल करती
हर गली हर चौराहे पर
चेहरे पर कुटिल मुस्कान
यह चुभती-सी नजरें
व्यथित करती मन
नजरंदाज कर देते सब
इनके बेढंग रवैए को
इसलिए ले बुलंद
हौसलें अपने
यह करते हुड़दंग हैं
मासूमों की ज़िंदगी
से खेल जाते
कर देते उनकी
अस्मत को तार-तार
खुलेआम धज्जियां उड़ाते
हर नियम हर कानून की
कल भी यही था
आज भी वही ढंग है
कमी समाज की सोच की
और इनके संस्कारों की
ना हीं इनके कुकर्मों पर
किसी की नज़र है
और ना ही इन्हें
किसी का रहता डर है
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
हृदयस्पर्शी चिन्तन के साथ सुन्दर सृजन अनु जी !
ReplyDeleteधन्यवाद मीना जी
Deleteदिल को छूती रचना,अनुराधा दी।
ReplyDeleteधन्यवाद प्रिय ज्योती बहन
Deleteबहुत सुन्दर 👌👌👌
ReplyDeleteहार्दिक आभार नीतू जी
Deleteबहुत सुंदर रचना..... ,सत्य हैं ,सादर स्नेह सखी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना सखी
ReplyDeleteसादर
सहृदय आभार श्वेता जी
ReplyDeleteवाह बहुत सुन्दर गहन रचना सखी ।
ReplyDeleteनाखुन लिये जो बैठी उन आंखों से बचे कैसे कोई
हाथो के खंजर दिख जाते आंखों से बचे कैसे कोई।
बहुत बहुत आभार सखी
Deleteबहुत सुन्दर सार्थक....
ReplyDeleteयह चुभती-सी नजर
भेदती हैं तन को
करती छलनी मन को
कुछ टटोलती-सी
हर नारी के देह को
एक अजीब-सा भाव
यह चुभती-सी नज़रें
आत्मा को घायल करती
गहन चिन्तनीय...
बहुत बहुत आभार सखी
Deleteचुभती-सी नज़रें
ReplyDeleteआत्मा को घायल करती
हर गली हर चौराहे पर
चेहरे पर कुटिल मुस्कान
यह चुभती-सी नजरें
व्यथित करती मन. ..बहुत ही सुन्दर वर्णन सखी
सादर
बहुत बहुत आभार सखी
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