बेटी बन बाबुल की
दहलीज की रखी मर्यादा
दिल पर पत्थर रख
माँ-बाप का घर छोड़ा
चली साजन के घर
अपने दिल को तोड़ा
सपनों की बांध पोटली
तिजोरी में रख छोड़ा
दहलीज का मान बढ़ाया
सबको रिश्तों में जोड़ा
सबकी खुशियांँ चुनी
अपनी खुशियों को छोड़ा
खुद गीले में सोई
सुखा बच्चों के लिए छोड़ा
सबके सुख के लिए
अपने वजूद को निचोड़ा
जब सपने याद आते
बंद तिजोरी को खोला
देखा, सहलाया
नम आँखों को पोंछा
देकर सबको सम्मान
खुद अपमान बटोरा
सब छोड़कर भी
चेहरे की मुस्कान को न छोड़ा
दी बार-बार अग्नि परीक्षा
पर नारी होने का गौरव
अपना अभिमान न छोड़ा
क्योंकि नारी ही नारायणी है
नारी से ही हर दहलीज की शोभा
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
Ati sunder rachna
ReplyDeleteधन्यवाद सारांश
Deleteसुंदर रचना।
ReplyDeleteसहृदय आभार सखी
DeleteBahut shandar rachna
ReplyDeleteबेहद आभार सखी
Deleteसुन्दर रचना।
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
Deleteबहुत बहुत आभार सखी
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