Followers

Friday, February 8, 2019

दहलीज की शोभा


बेटी बन बाबुल की
दहलीज की रखी मर्यादा
दिल पर पत्थर रख
माँ-बाप का घर छोड़ा
चली साजन के घर
अपने दिल को तोड़ा
सपनों की बांध पोटली
तिजोरी में रख छोड़ा
दहलीज का मान बढ़ाया
सबको रिश्तों में जोड़ा
सबकी खुशियांँ चुनी
अपनी खुशियों को छोड़ा
खुद गीले में सोई
सुखा बच्चों के लिए छोड़ा
सबके सुख के लिए
अपने वजूद को निचोड़ा
जब सपने याद आते
बंद तिजोरी को खोला
देखा, सहलाया
नम आँखों को पोंछा
देकर सबको सम्मान
खुद अपमान बटोरा
सब छोड़कर भी
चेहरे की मुस्कान को न छोड़ा
दी बार-बार अग्नि परीक्षा
पर नारी होने का गौरव
अपना अभिमान न छोड़ा
क्योंकि नारी ही नारायणी है
नारी से ही हर दहलीज की शोभा
***अनुराधा चौहान***

चित्र गूगल से साभार

9 comments: