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Monday, February 18, 2019

बुढ़ापा

बीता बचपन आई जवानी
ढलती रही उम्र वक़्त के साथ
बुढ़ापे ने भी दे दी दस्तक
भागता रहा समय का चक्र
ये क्षणभंगुर जीवन के पल
यह भी ढल जाएंगे ढलते-ढलते
बस यादें ही हैं खट्टी-मीठी
जिनके संग अब ज़िंदगी बीते
तजुर्बोे की पोटली से निकले
इस क्षणभंगुर जीवन का सार
आँखो की कमजोर रोशनी
रुखा होता अपनों का व्यवहार
बुढ़ापा होता जीवन पर भारी
आश्रित जीवन बना लाचारी
कम होता बच्चों का प्यार
कैसा है ये उमर का पड़ाव
बिखरती आशाएं दम तोड़ते सपने
झुर्रियों के जाल में फंसा मन
ढलती उम्र जीने की माया
कमजोर मन निर्बल होती काया
आँखो में घूमता अतीत का साया
बुढ़ापे ने दी जब से जीवन में दस्तक
खत्म हुआ रौब, शान-शौकत
जीवन की मीठी यादों में
अब यह जीवन बीत रहा
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

8 comments:

  1. बिखरती आशाएं दम तोड़ते सपने
    झुर्रियों के जाल में फंसा मन
    ढलती उम्र जीने की माया
    कमजोर मन निर्बल होती काया...वाह बहुत ख़ूब सखी
    सादर

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  2. बुढापा केवल निराशा नहीं ... दर्शन है जीवन ... अनुभव की खान ...
    अच्छी रचना है ...

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  3. दिल से लिखी गयी और दिल पर असर करने वाली रचना , बधाई तो लेनी ही होगी

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