मौन ही करता रहा
मौन से संवाद
स्वप्न नये गढ़ता रहा
खुद के दरमियान
छूकर गुजरती हवा
राग कुछ छेड़ती
शब्द की खामोशी को
छेड़कर तोड़ती
सिमटी बूँद ओस की
कली से कर बात
मौन ही करता रहा
मौन से संवाद
मन कुछ उदास-सा है
शब्द आज मौन हैं
मतलबी जग में कहाँ
किसी का कौन है
सहम-सहम चली हवा
हैं अलग अंदाज
मौन ही करता रहा
मौन से संवाद
ढल रही है साँझ अब
रात काली घनी
यादें बिखर रही हैं
टूटे कड़ी-कड़ी
चीर रहे सन्नाटे को
दर्द भरें यह जज़्बात
मौन ही करता रहा
मौन से संवाद।।
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 16 नवम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत सार्थक सृजन सखी
ReplyDeleteसुंदर भावों का सुंदर चित्रण।
हार्दिक आभार सखी
Deleteवाह! वाह! अप्रतिम।
ReplyDelete"मौन ही करता रहा,
मौन से संवाद"
धन्यवाद आदरणीय
Deleteबेहतरीन और लाजवाब सृजन अनुराधा जी । बहुत खूबसूरत भावाभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार मीना जी
Deleteमौन से मौन का संवाद कितना कुछ बोलता हुआ ...
ReplyDeleteसार्थक रचना ...
हार्दिक आभार आदरणीय
Deleteचीर रहे सन्नाटे को,
ReplyDeleteदर्द भरें यह जज़्बात....सुंदर भावों का सुंदर चित्रण।
हार्दिक आभार आदरणीय
Delete