कलम का प्रहार हो,
दो धारी तलवार हो,
मन मजबूत कर,
आवाज उठाइए।
बड़े-बड़े यहाँ चोर,
मंहगाई करे शोर,
जनता का लिखें दर्द,
लेखनी चलाइए।
डरती नहीं है यह,
खोलती है कान यह,
कमजोर समझ के,
भूल मत जाइए।
खोलती है यह राज,
लिखती है दिन-रात,
कलम की ताकत को,
कम मत मानिए।
लिखती है बार-बार,
एक ही करे पुकार,
लुट रही बेटियों की,
लाज को बचाइए।
बैठे आँख बंद कर,
ऊँची-ऊँची कुर्सियों पे,
अब आप-बीती भला,
किसको सुनाइए।
थक कर रुके नहीं,
लेखनी का धर्म यही,
बुराई से लड़ने में,
हार मत मानिए।
कोशिश हर जंग की,
अनेक रूप रंग की,
सच्चाई की राह चल,
सब अपनाइए।
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
लेखनी की ताकत को कम आंकने का सवाल ही पैदा नहीं होता।
ReplyDeleteआप लिखते वक्त कमाल ही कर देती हैं।
मेरी नई पोस्ट पर स्वागत है👉👉 जागृत आँख
वाह ,बहुत खूब
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार सखी
Deleteअनुराधा बिल्कुल सही और आपकी लिखने इसका प्रमाण है
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार
Deleteथक कर रुके नहीं,
ReplyDeleteलेखनी का धर्म यही,
बुराई से लड़ने में,
हार मत मानिए।
बेहद प्रभावी रचना अनुराधा जी ।
जी हार्दिक आभार
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 17 फरवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteकलम का प्रहार हो,
ReplyDeleteदो धारी तलवार हो,
मन मजबूत कर,
आवाज उठाइए।
बेहतरीन पंक्तियाँ लिखी हैं आपने आदरणीया । बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।
हार्दिक आभार आदरणीय
Deleteथक कर रुके नहीं,
ReplyDeleteलेखनी का धर्म यही,
बुराई से लड़ने में,
हार मत मानिए।
लाजबाब ,बहुत ही सुंदर सृजन सखी ,सादर
हार्दिक आभार सखी
Delete