जहाँ जाना चले जाओ
कभी फिर लौट के आओ।
मिलेंगे बंद दरवाजे
नहीं फिर साथ ये पाओ।।
किया विश्वास तभी टूटा
दिया था साथ वो छूटा।
लगी जब चोट सीने पे
तभी दिल का भरम टूटा।
भले अब लौटकर आओ
हमें झूठा न बतलाओं।
मिलेंगे बंद दरवाजे
नहीं फिर साथ ये पाओ।।
न मानी बात अपनों की
मिटा दी चाह सपनों की।
चला सब छोड़ के ऐसे
कमी तुझमें सदा से थी।
बिना तेरे बहुत खुश हैं
यहाँ से तुम चले जाओ।
मिलेंगे बंद दरवाजे
नहीं फिर साथ ये पाओ।।
तेरे के ख्याल में खोए
सदा दिखते रहे सोए।
हमीं पागल बने ऐसे
मिले धोखे तभी रोए।
आँसू पोंछ लिए हमने
झूठी सूरत दिखलाओ।
मिलेंगे बंद दरवाजे
नहीं फिर साथ ये पाओ।।
यही सोचे कभी ये दिल
मिला क्या आज तुमसे मिल।
नहीं भूला मिला धोखा
नहीं बदला बिचारा दिल।
अभी भी सोचता अक्सर
कहीं हमसे न टकराओ।
मिलेंगे बंद दरवाजे
नहीं फिर साथ ये पाओ।।
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
अपने ही विचारों के क्रम में उलझी कविता
ReplyDeleteसुंदर
जी आभार आदरणीय
Deleteबेहतरीन और लाजवाब👌👌 अत्यंत सुन्दर सृजन ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 28
ReplyDeleteजनवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
हार्दिक आभार यशोदा जी
Deleteहार्दिक आभार सखी
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना है।
ReplyDeleteहार्दिक आभार श्वेता जी
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
ReplyDeleteएक बार विश्वास तोड़ने और धोखा करने वाले के लिए दिल के दरवाजे हमेशा के लिए बन्द हो जाते है...बस औपचारिकता बचती है प्रेम नहीं...
ReplyDeleteबहुत लाजवाब सृजन
वाह!!!
हार्दिक आभार सखी
Deleteबहुत सुंदर गीत लिखा सखी आपने ।
ReplyDeleteवाह! सखी ,लाजवाब!!
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