गुमशुदा है कोई मुझमें
मैं या मेरे सपने कहीं
ढूँढ के बतलाऊँ कैसे
गुम हुई खुशियाँ कोई
चाँद छूटा तारे छूटे
आँखों के नजारे छूटे
बंद कर खिड़कियों को
हम किस किनारे बैठे
रात के तन्हाईयों में
फिर गिरा तारा कोई
गुमशुदा है कोई मुझमें
मैं या मेरे सपने कहीं
ढूँढते हैं अब कहाँ हम
मुझमें जो खोया कोई
प्यास जीवन की अमिट
नाम न बुझने का ले
मन के आँगन में खड़ी
याद की परछाई तले
एक धुँधली-सी सूरत
देख मैं रोती रही
धुँध की बदली में छुपकर
खुद में ही खोती रही
कहीं सिसकती बदलियाँ का
राग सुना रहा कोई
कहीं सिसकती बदलियाँ का
राग सुना रहा कोई
गुमशुदा है कोई मुझमें
मैं या मेरे सपने कहीं
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
बहुत बढिया ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Deleteमन के आँगन में खड़ी
ReplyDeleteयाद की परछाई तले
एक धुँधली-सी सूरत
देख मैं रोती रही
भावनाओं से ओतप्रोत सुंदर सृजन सखी
हार्दिक आभार सखी
Deleteढूँढते हैं अब कहाँ हम
ReplyDeleteमुझमें जो खोया कोई
प्यास जीवन की अमिट यादों से उमड़े शब्द और भाव .. अच्छी प्रस्तुति
वक़्त मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी आयें
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
हार्दिक आभार आदरणीय
Deleteगुमशुदा है कोई मुझमें
ReplyDeleteमैं या मेरे सपने कहीं
ढूँढ के बतलाऊँ कैसे
गुम हुई खुशियाँ कोई....
बेहतरीन सृजन, वाकई आनन्द आ गया। ईश्वर आपकी लेखनी को और सशक्त बनाऐ। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीया।
भावपूर्ण सृजन दी।
ReplyDeleteस्मृतियाँँ हो अथवा अधूरी इच्छाएँँ,इन्हें लेकर अतृप्त हृदय ऐसी ही अनुभूति करता है..
यह जानते हुए भी कि बीता हुआ कल वापस नहीं लौटता।