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Friday, January 17, 2020

गुमशुदा है कोई मुझमें

गुमशुदा है कोई मुझमें
मैं या मेरे सपने कहीं
ढूँढ के बतलाऊँ कैसे
गुम हुई खुशियाँ कोई
चाँद छूटा तारे छूटे
आँखों के नजारे छूटे
बंद कर खिड़कियों को
हम किस किनारे बैठे
रात के तन्हाईयों में
फिर गिरा तारा कोई
गुमशुदा है कोई मुझमें
मैं या मेरे सपने कहीं
ढूँढते हैं अब कहाँ हम
मुझमें जो खोया कोई
प्यास जीवन की अमिट
नाम न बुझने का ले
मन के आँगन में खड़ी
याद की परछाई तले
एक धुँधली-सी सूरत
देख मैं रोती रही
धुँध की बदली में छुपकर
खुद में ही खोती रही
कहीं सिसकती बदलियाँ का
राग सुना रहा कोई
गुमशुदा है कोई मुझमें
मैं या मेरे सपने कहीं
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

8 comments:

  1. Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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  2. मन के आँगन में खड़ी
    याद की परछाई तले
    एक धुँधली-सी सूरत
    देख मैं रोती रही

    भावनाओं से ओतप्रोत सुंदर सृजन सखी

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  3. ढूँढते हैं अब कहाँ हम
    मुझमें जो खोया कोई
    प्यास जीवन की अमिट यादों से उमड़े शब्द और भाव .. अच्छी प्रस्तुति

    वक़्त मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी आयें
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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    Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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  4. गुमशुदा है कोई मुझमें
    मैं या मेरे सपने कहीं
    ढूँढ के बतलाऊँ कैसे
    गुम हुई खुशियाँ कोई....
    बेहतरीन सृजन, वाकई आनन्द आ गया। ईश्वर आपकी लेखनी को और सशक्त बनाऐ। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीया।

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  5. भावपूर्ण सृजन दी।
    स्मृतियाँँ हो अथवा अधूरी इच्छाएँँ,इन्हें लेकर अतृप्त हृदय ऐसी ही अनुभूति करता है..
    यह जानते हुए भी कि बीता हुआ कल वापस नहीं लौटता।

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