49
धागा
धागा बाँधा प्रेम का,मन में लेकर आस।
बहना को भैया सदा,रखती दिल के पास।
रखती दिल के पास,सदा ममता से छलकें।
बाँधा धागा प्रेम,खुशी से भीगी पलकें।
बहना का दिल तोड़,चला मुख फेर अभागा।
नैनो में दे नीर,सदा को तोड़ा धागा।
50
बिखरी
बिखरी किरणें धूप की,आयी उजली भोर।
लाली लाली देख के,मुस्काती है जोर।
मुस्काती है जोर,लली पलना में खेले।
चहकी चिड़िया भोर,सजे फूलों से ठेले।
कहती अनु यह देख,धरा की आभा निखरी।
सरसों फूली खेत,गली में किरणें बिखरी
लाली--बिटिया
लाली--लालिमा
51
गलती
गलती कर-कर सीखते,करते ऊँचा नाम।
गलती देती सीख ये,करले अच्छे काम।
करले अच्छे काम,तभी तो मंजिल मिलती।
सपने हो साकार,कली फिर दिल की खिलती।
कहती अनु सुन बात,बुराई पीछे चलती।
गलती से ले सीख,नहीं फिर होती गलती
52
बदला
जाने कैसा हो गया,मौसम का अब हाल।
बदला बदला रूप है,मानव है बेहाल।
मानव है बेहाल,चढ़ा मौसम का पारा।
करनी अपनी देख,मिटा के उपवन सारा।
रोता अब है बैठ, फिर भी गलती न माने।
बदला मौसम देख,खुद को न दोषी जाने।
53
दुनिया
दुनिया अद्भुत है बड़ी,गहरे इसके राज।
जाने कब यह कौन सा,छेड़े कोई साज।
छेड़े कोई साज,कहीं लहरों की सरगम।
दुनिया बड़ी अजीब,कभी जलती है हरदम।
कहती अनु सुन साज,कहीं पे चहकी मुनिया।
गाती मधुर गीत,बड़ी ही प्यारी दुनिया।
54
तपती
तपती धरती देख के,मानव हुआ अधीर।
करनी से खुद ही सहे,मौसम की दी पीर।
मौसम की दी पीर,सही अब जाए कैसे।
करनी का फल भोग, चला क्यों रोता ऐसे।
उपवन उजड़े देख,धरा फिर हौले कँपती।
डोले धरती जोर,हवा भी जम के तपती।
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
लाली--लालिमा
51
गलती
गलती कर-कर सीखते,करते ऊँचा नाम।
गलती देती सीख ये,करले अच्छे काम।
करले अच्छे काम,तभी तो मंजिल मिलती।
सपने हो साकार,कली फिर दिल की खिलती।
कहती अनु सुन बात,बुराई पीछे चलती।
गलती से ले सीख,नहीं फिर होती गलती
52
बदला
जाने कैसा हो गया,मौसम का अब हाल।
बदला बदला रूप है,मानव है बेहाल।
मानव है बेहाल,चढ़ा मौसम का पारा।
करनी अपनी देख,मिटा के उपवन सारा।
रोता अब है बैठ, फिर भी गलती न माने।
बदला मौसम देख,खुद को न दोषी जाने।
53
दुनिया
दुनिया अद्भुत है बड़ी,गहरे इसके राज।
जाने कब यह कौन सा,छेड़े कोई साज।
छेड़े कोई साज,कहीं लहरों की सरगम।
दुनिया बड़ी अजीब,कभी जलती है हरदम।
कहती अनु सुन साज,कहीं पे चहकी मुनिया।
गाती मधुर गीत,बड़ी ही प्यारी दुनिया।
54
तपती
तपती धरती देख के,मानव हुआ अधीर।
करनी से खुद ही सहे,मौसम की दी पीर।
मौसम की दी पीर,सही अब जाए कैसे।
करनी का फल भोग, चला क्यों रोता ऐसे।
उपवन उजड़े देख,धरा फिर हौले कँपती।
डोले धरती जोर,हवा भी जम के तपती।
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
अति सुंदर सखी , सादर नमस्कार
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 30.1.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3596 में दिया जाएगा । आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी ।
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण कुंडलियां सखी👌👌👌👌
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन सखी।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भावपूर्ण कुण्डलियाँ
ReplyDeleteवाह!!!