हर क्षण बदलता जीवन
हर क्षण बदलती काया
मत करो गुरूर जीवन पर
कब बदले इसकी माया
क्षण क्षण फिसलती
जिंदगी देती है संदेश
कर्मों की गाति तेज कर
नहीं तो हो जाएगी देर
इक क्षण का खेल यह जिंदगी
गर्व करो न इस काया पर
एक क्षण मिट जाएगी यह
कोई जाने न मौत की माया को
क्षण में बदलती किस्मत का
खेल किसी से न जाना
कब राजा से रंक बने
कब कोई रंक से राजा
क्षण में बदलती किस्मत की रेखा
क्षणभंगुर यह जीवन बना है
इक क्षण में मिट जाने को
जिंदा दिलों में रहना है तो
सत्कर्मों से पहचान बना लो
***अनुराधा चौहान***
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 26/10/2018 की बुलेटिन, "सेब या घोडा?"- लाख टके के प्रसन है भैया !! “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार शिवम् जी मेरी रचना को स्थान देने के लिए
Delete'पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात,
ReplyDeleteदेखत ही छुप जाएंगे, ज्यों तारा परभात !'
अनुराधा जी, जिसने कबीर की नहीं सुनी, वो आपकी यह सुन्दर कविता कहाँ सुनेगा?
सही कहा आपने आदरणीय बहुत बहुत आभार
Deleteबहुत सुंदर रचना अनुराधा जी ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार मीना जी
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