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Sunday, July 29, 2018

न उगलो जहर

समाज में आज-कल कुछ ऐसी घटनाएं घटित हो रही है जो अक्सर मन में एक बैचेनी पैदा करने लगती हैं यह बेहद चिंता का विषय है मेरे मन के भाव प्रकट करती यह रचना

जातिवाद के
मुद्दे लेकर
न टकराओ
आपस में

न कुकर्म
करो इतने
शर्म मर जाए
आंखों में

मत उगलो
जहर इतना
कि जीना
मुश्किल हो जाए

इंसान मरे
या न मरे
सर्प शर्म से
मर जाए

मत पालो
नफरत इतनी
दिल भी
पत्थर हो जाए

प्यार बिचारा
सदा के लिए
दिल के दौरे
से मर जाए

अभी वक्त है
संभल जाओ
करनी को
अपनी सुधार लें

बीज डाल कर
प्यार के
नेकी के
पौधे लगाले

जो बोए बीज
बबूल के
आम कहां से
पाओगे

इंसानियत को
अपनी बचाके
प्यार की कुछ
बारिश करले
***अनुराधा चौहान***

11 comments:

  1. वाकई .....सुन्दर शब्द चयन।शानदार रचना

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  2. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ३० जुलाई २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/



    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।



    आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'

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  3. जी बहुत बहुत धन्यवाद ध्रुव जी

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  4. धन्यवाद आदरणीय 🙏

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  5. वाह लाजवाब सुंदर सीख देती शुभ्र भावों वाली उत्तम रचना।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद कुसुम जी

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  6. Replies
    1. धन्यवाद आदरणीय लोकेश जी

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  7. Samajik jeevan ki samasyaaen ko ujagar kar rahi hain,aapki panktiyaan.Bahut hi badhiya hai.

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