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Wednesday, July 18, 2018

मन इक पंछी आवारा

मन इक
पंछी आवारा
मस्त मगन
उड़ता फिरता
कभी यहां
कभी वहां
सपने अलबेले
बुनता
कभी महलों में
कभी रिश्तों में
सुकुन के
पल ढूंढ़ता
कभी बेपरवाह
हो फिरता
मन इक
पंछी आवारा
मस्त मगन
उड़ता फिरता
कभी आसमां में
तारे गिनता
कभी तन्हाइयों में
गोते खाता
कभी आसमां की
ऊंचाईयों में
पंख फैला कर
 उड़ता फिरता
कभी उदास
और हताश
अंधेरे में जा छुपता
कभी प्रिय
मिलन की चाह में
खुशी से
झूमने लगता
मन इक
पंछी आवारा
मस्त मगन
उड़ता फिरता
***अनुराधा चौहान***

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