ख्वाबों के महल बहुत बड़े हैं
राह में अजगर बहुत पड़े हैं
कैसे मंज़िल को में पाऊँ
जमाना बैरी बन बैठा
राह में आगे बढ़ते जाते
जब निकलूँ में किसी मोड़ से
खड़े मिलते वहाँ हैवान
जमाना बैरी बन बैठा
कठिनाई भरा नारी जीवन
सबके मन की करते करते
जहाँ ऊँची भरी उड़ान
जमाना बैरी बन बैठा
सबके संग प्यार बाँटकर
सबको अपने साथ जानकर
हमने थोड़ा जीना चाहा
जमाना बैरी बन बैठा
किसी के संग दो बातें करली
किसी के संग जरा क्या हँसली
सच्चाई को बिना ही समझे
मचता हाहाकार
जमाना बैरी बन बैठा
कब तक यह रीत चलेगी
नारी यूँ ही झुकती रहेगी
छू पाएगी क्या आकाश
जमाना बैरी बन बैठा
***अनुराधा चौहान***