उमड़-घुमड़ के काली बदरी
नीले अम्बर को घेरे
शीतल ठंडी पवन मचलती
घिरते हैं मेघ घनेरे।
नयन आस से देख रहे हैं
कब ये बदली बरसेगी।
कहीं हवा उड़ा न ले जाए
ये अखियाँ फिर तरसेगी।
बैरी पवन जरा हौले चल
उड़े संग नीरद तेरे।
उमड़-घुमड़ के काली बदरी
नीले अम्बर को घेरे
हाल बेहाल करती गर्मी
धूप देह को झुलसाती।
घनघोर घटाएं घिर घिर के
जनमानस को हर्षाती।
चपल दामिनी की थिरकन ने
डाले धरती पे डेरे।
उमड़-घुमड़ के काली बदरी
नीले अम्बर को घेरे
सुनो करे पुकार वसुंधरा
अब जोर-जोर घन बरसे।
हरियाली की ओढ़ चूनरी
धरती का भी मन हरषे।
मचल रहीं नदिया की लहरें
करने सागर के फेरे।
उमड़-घुमड़ के काली बदरी
नीले अम्बर को घेरे
***अनुराधा चौहान'सुधी'***