युगों युगों तक तरसी जनता
राम धाम के दर्शन को।
त्याग तपस्या का फल मिलता
देख बने अब मंदिर को।
विधना के भी खेल निराले
राम लला का घर छूटा।
देख पीर श्री राम लला की
जन-मन का हृदय टूटा।
विराम हुआ संघर्ष देख अब
राम नाम का कीर्तन हो।युगों युगों....
स्वर्ण द्वार सुंदर नक्काशी
रामभवन यह भव्य बना।
सुंदरता कुछ कही न जाय
सरजू तट शुभ भवन तना।
देव देखकर हर्षाते सब
श्री राम चले अपने घर को। युगों युगों....
मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु के
धीरज का कोई अंत नहीं।
माया तज श्री राम को पूजे
कोई भरत सा संत नहीं।
पहन आभूषण राम चले घर
थाम धनुष सुदर्शन को। युगों युगों..
अनुराधा चौहान'सुधी