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Friday, January 28, 2022

भूख


भूख पेट की बढ़ती जाती
अंतड़ियाँ दुखड़ा रोती।
धनवानों की बैठ तिजोरी
हँस रहे हीरा मोती।

पेट कसे निर्धन चुप होकर
ढूँढ रहा सूखी रोटी।
भूख प्राण की बलि ले हँसती
कुक्कुर नोच रहा बोटी।
देख पीर सन्नाटे छुपकर
मानवता भी चुप सोती।
भूख पेट की....

साँझ ढले फिर खाली हाँडी
चूल्हे पर चढ़ी चिढ़ाती।
खाली बर्तन करछी घूमे
बच्चों का मन बहलाती।
नन्ही आँखें प्रश्न पूछती
आशा फिर झूठी होती।
भूख पेट की....

शीत खड़ी दरवाजे पर जब
सन्न सन्न सोटे मारे
नन्हे थर-थर काँप उठे फिर
रातों में बदन उघारे।
स्वप्न रजाई हर बार सुना
तन ढाँक रही माँ धोती।
भूख पेट की....

©® अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित
चित्र गूगल से साभार

Monday, January 24, 2022

मिट रही संवेदनाएं


 प्रीत रोकर मौन मन से
कह रही अपनी कथाएं।
छल-कपट की क्यारियों में
सूखती हैं भावनाएं।

वेदना व्याकुल हुई पथ
छटपटाती सी पड़ी है।
दर्प डूबी लालसाएं
शूल सी सीने अड़ी है।
रस बिना अब रंग खोती
प्रेम की सब व्यंजनाएं।
प्रीत रोकर.....

बेल सी बढ़ती कलुषता
चेतना ही लुप्त करती।
द्वंद अंतस में बढ़े फिर
सत्यता को सुप्त करती।
बोझ मिथ्या मन बढ़ा तो
मिट रही संवेदनाएं।
प्रीत रोकर.....

हृदय पट को मूँदकर ही
नेह सागर मौन होता।
बैर की बढ़ती तपिश में
चैन से अब कौन सोता।
स्वप्न आहत हो बिलखते 
आज सहकर वर्जनाएं।
प्रीत रोकर.....
©® अनुराधा चौहान'सुधी'
चित्र गूगल से साभार

Wednesday, January 19, 2022

ज़िंदगी अभिनय नहीं


 ज़िंदगी अभिनय नहीं
यह सत्य तुम पहचान लो।
कर्म से पहचान होती
यह बात सच्ची जान लो।

ख्वाहिशों का बोझ सिर पे
काम कुछ करना नहीं है।
स्वप्न में बीने रुपैया
दाम कुछ भरना नहीं है।
डींग भरता जो हमेशा
शेखचिल्ली वो मान लो।
ज़िंदगी अभिनय......

आँखों में चश्मा काला
धूप हल्की बोलते हैं।
हाथ खीसे में दबाए
शान में बस डोलते हैं।
मेहनत करती नाम रोशन
सत्यता यह जान लो
ज़िंदगी अभिनय..........

भागती गाड़ी समय की
पकड़े वही जीतता है।
आलस्य की दौड़ चलकर
राह कंटक सींचता है।
जगमगाना हो दीप सा
कर्म करने की ठान लो।
ज़िंदगी अभिनय.........
अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित

चित्र गूगल से साभार

Thursday, January 13, 2022

साँझ की देहरी


 जल गई आशा चिता में
ढूँढते अवशेष सारे।
हँस रहा है बैर बैठा
प्रीत चुन-चुन रोज मारे।

चल रही निर्मम पवन भी
विष धुआँ आकार लेता।
भस्म बन नयना कुरेदे
हृदय गहरे घात देता।
मौन भी चित्कार करता
देख सहमे चाँद तारे।
जल गई आशा .......

अश्रु के मोती समेटे
विरह सागर बह रहा है।
गूँथने विश्वास बैठा
नेह धागा जल रहा है।
पथ खड़ी हो वेदना फिर
ढूँढती नूतन सहारे।
जल गई आशा .......

साँझ की देहरी बैठी
रैन पीड़ा से जड़ी है।
काल की लकड़ी पकड़कर
आस नन्ही-सी खड़ी है।
कह रहा यह देख अम्बर
अब प्रलय से जीव हारे।
जल गई आशा .......
अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित
चित्र गूगल से साभार

Monday, January 10, 2022

मुस्कुराती भोर


मुस्कुराती भोर आकर
जब धरा का मुख निहारे।
लौटती लेकर निशा तब
साथ अपने चाँद तारे।

गूँजते आँगन हँसी से
बर्तनों की थाप सुनकर।
अरगनी पर सूखते फिर
स्वप्न नूतन नित्य बुनकर।
पायलों की छनछनाहट
गुनगुना आँगन बुहारे।।
मुस्कुराती भोर.....

आस पंछी सी चहकती
देख खिलता नव सबेरा।
धूप का टुकड़ा खिसक कर
पोंछता मन का अँधेरा।
माँग सिंदूरी लजाकर
रूप दर्पण में निहारे।
मुस्कुराती भोर.....

मुस्कुराती डालियाँ जब
प्रीत पुरवा खिलखिलाती।
सज उठी वेणी कली फिर
लग रही जैसे लजाती।
चूड़ियों की खनखनाहट
नाम बस पी का पुकारे।
मुस्कुराती भोर......
*अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित

चित्र गूगल से साभार