(चित्र गूगल से साभार) |
समंदर लहराने लगा
दिल में सोया हुआ
वह खौफनाक मंजर
फिर जगाने लगा
यह भयानक हवाएं
यह काली घटाएं
देख दर्द का सैलाब
मेरी आंखों से आने लगा
नहीं भूल पाती में
तेरी आंखों के आंसू
वो तड़प वो पीड़ा
जिन्हें तूने झेला
भयावह वह मंजर
थी नियति भी सहमी
रूह तेरे जिस्म से
अब निकलने लगी थी
थे बेबस और लाचार
हम सिसकने लगे थे
द्रवित होकर आसमां भी
अब रोने लगा था
तुझे लेने आगोश में
थी हवाएं भी आतुर
नहीं भूल सकती
भयावह वह मंजर
यह दुःख का समंदर
जो बसा हुआ है
मेरे मन के अंदर
नहीं भूल सकती में
नहीं भूल सकती
***अनुराधा चौहान***