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Monday, May 30, 2022

ओस के मोती


जो सुने गीत हम चले आये।
बाँधकर प्रीत साथ में लाए॥

दो घड़ी पास में जरा बैठो।
बीतती रात रागिनी गाये॥

मौन हो आज पायलें बैठी।
चूड़ियाँ भी न भेद बतलाये॥

चाँद भी रूप ले सजीला सा।
झील को देख आज इतराये॥

छेड़ते राग पात पीपल भी।
मोहिनी गंध ले खुशी छाये॥

ज्यों खिली भोर तो कली फूली।
देखकर रूप भृंग इठलाये॥

तू सुधी बीन ओस के मोती 
धूप के ताप में न उड़ जाये॥
*अनुराधा चौहान'सुधी'✍️*
चित्र गूगल से साभार

Monday, May 9, 2022

कोलाहल हृदय का


 स्वप्न सारे टूट बिखरे
ठेव मन पर जोर लागी‌।
रात भी ढलती रही फिर  
बैठ पलकों पे अभागी।

आस के पग डगमगाते
थक कर न रुक जाए कहीं ।
थाम ले छड़ी चेतना की
कोई शिखर मुश्किल नहीं।
देख कोलाहल हृदय का
हो रहा मन वीतरागी।
स्वप्न सारे....

काल की गति तेज होती
जो रुका वो हारता है।
लक्ष्य को आलस की बेदी
वो हमेशा वारता है।
सत्य आँखें खोलता जब
फिर भ्रमित सी पीर जागी।
स्वप्न सारे....

ज्योति जीवन की बुझाने
तम घनेरा हँस रहा है।
कष्ट यह निर्झर बना फिर
नयन से चुपके बहा है।
साँस अटकी देखकर तब
नींद पलकें छोड़ भागी।
स्वप्न सारे....
©® अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित
चित्र गूगल से साभार