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Thursday, January 31, 2019

यादें

सावन बीत गया
बीत रहा बसंत
पतझड़-सा हो गया
जीवन का सफ़र
मन में बसाए हसीं
लम्हों की सुनहरी याद
ढलती जाए उमर
समय की चाल से
सब कुछ बदल जाता है
वक़्त की तेज रफ्तार में
रिश्ते भी सूखे पात से
उड़ जाते बहार में
ज़िंदगी का बसंत 
फिर लौटकर नहीं आता 
ज़िंदगी का भी दामन
छूटता जाता है
तब यादों के ख़ज़ाने से
निकलते हैं कुछ छिपे हुए
दर्द, तड़प और तन्हाई
कुछ प्यारी-सी यादें
कुछ टूटे सपनों की किर्चें
तो कुछ अनमोल सौगातें
मस्ती भरी याद बचपन की
मनभाती अल्हड़ जवानी
बीत जाते कब यह पल
यादें रह जाती हैं बाकी
***अनुराधा चौहान***

याद आ गई कहानी

शाम के आगोश में
जाकर सो गया दिनकर
ढल रहा है दिन
घर लौट रहें हैं विहंग
सजनी भी संदेश देने
टटोलती चाँद का मन
झाँक उठा चाँद गगन से
चाँदनी लहराकर आँचल
उतर आई है ज़मीं पर
टाँक दिए कुदरत ने तारे
आसमां के चूनर में
चाँद बन बिंदियाँ
चमक उठा अंबर के माथे
बुजुर्गो की कही हुई
याद आ गई कहानी
जो सुनी थी बचपन में
चाँद पर चरखा चलाती
बैठी रहती है बुढ़िया नानी
***अनुराधा चौहान***

Wednesday, January 30, 2019

ऋतुराज वसंत

बसंती हवाओं में
झूमतीं फसलें
महकती अमराई
सूरज की किरणों से
धरती इठलाई
पीले लहराते
सरसों के खेत
जैसे पीली चूनर
ओढ़कर गोरी
झूम उठी
साजन से मिलकर
धूप ने भी
बदले हैं कुछ तेवर
लगती है अब
थोड़ी गरमाती
कोयल कूह-कूह
का मधुर गीत सुनाती
फूलों के ऊपर
मोती-सी
बिखरी ओस की बूँदें
सूरज की
किरणों से शरमातीं
बसंत ऋतु में
प्रकृति का
अनुपम नजारा
होता है
बहुत ही प्यारा
रंग बिरंगे फूलों पर
भंवरों की गुनगुनाहट
त्यौहारों की सौगात
लेकर आया है ऋतुराज
***अनुराधा चौहान***

Monday, January 28, 2019

माँ


सरल सौम्य उसकी हंँसी
आंँगन में उससे ख़ुशी
घर में रहती है हलचल
उसकी पायल की
छम-छम से
पकवानों की
खुशबू उड़ती
रसोईघर से निकलकर
माथे पर पसीना लिए
तकलीफ़ों को सहती
सुंदर से मुखड़े पर
हंँसी हरदम रहती
आँखों से उसकी
ममता का रस
छलकता है
उसके आंँचल की छांँव तले
बचपन फूलों-सा खिलता है
हर धूप-छांँव से
रखती बचाकर
गोद में अपनी बिठाकर
संस्कारों का पाठ पढ़ाती
सबके जीवन को
खुशियों से सजाती
सीधी-सरल भोली सी
माँ होती है बड़ी ही प्यारी
कष्टों को खुद सह लेती
पर हम पर ममता बरसाती
***अनुराधा चौहान***

चित्र गूगल से साभार

Friday, January 25, 2019

वंदे मातरम्

देशप्रेम हो सबसे ऊपर
तुम देश की शान बनों
तोड़ सकें न कोई तुमको
तुम ऐसी दीवार बनों
हम संतानें भारत माँ की
भारत की पहचान बनों
जात-पात से ऊपर उठकर
मानवता की पहचान बनों
सच्चाई के पथ पर चल
मातृभूमि की शान बनों
कर्मभूमि यह वीरों की
इसका मान बढ़ाना है
विश्व विजयी ओर सबसे प्यारा
तिरंगा हमको फहराना है
भरो हुंँकार जागो युवा
आतंकवाद ने बहुत कुछ छीना
आतंक के घाव मिटाकर
सुख का सूरज ले आना है
याद करो जो शहीद हुए
वो भी किसी की संतान थे
भारत की शान की खातिर
उन्होंने प्राणों का बलिदान दिया
भूलों न इस बलिदान को
आओ मिलकर करें प्रतिज्ञा
मातृभूमि की रक्षा से ऊपर
न हो कोई धर्म दूसरा
देशप्रेमी का युगों-युगों तक
गूंँजता रहता है जग में नाम
गणतंत्र दिवस के अवसर पर
आओ मिलकर शपथ उठाएंँ
जय भारत जय भारती
वंदे मातरम् गूंँजे हर गली
***अनुराधा चौहान***

Thursday, January 24, 2019

अवसाद से घिरा मन

इच्छाएँ दम तोड़ने लगतीं हैं
आशाएंँ मुख मोड़ने लगतीं हैं
वक़्त भी भागता रहता है
अपनी तेज रफ्तार से
हमें बहुत कुछ देकर
हमसे बहुत कुछ लेकर
खो जाए ज़िंदगी में
जब कोई सदा के लिए
तब अवसाद से घिर जाता मन
कुछ न भाता है रात -दिन
फिर अंधेरा आंँखों को भाता है
बसंत बिल्कुल न सुहाता है
तन्हाइयांँ रास आतीं हैं
चाँदनी आंँखों में चुभती है
सिर्फ यादें उनकी दिन-रात 
साथ नहीं छोड़ती
अंदर ही अंदर दिल तोड़ती
मन भी कहीं शून्य में 
खोता-सा नजर आता है
अंदर कुछ टूटता नजर आता है
निकलना जितना भी चाहें
यादों के भंँवर में फंसते जाते हैं
सब कुछ भूल जाएं हम मगर
 उन्हें हम भूल नहीं पाते
***अनुराधा चौहान***

चित्र गूगल से साभार

Wednesday, January 23, 2019

भावों का प्रवाह

भावों के प्रवाह को
बनकर कविता बहने दो
शब्दों के सुंदर संसार में
सपनों को जीने दो

यह ऐसा संसार है
जिसमें रंग हजार है
जो काम न हथियारों से होता
वो करती कलम की धार है

मत रोको बहने से
भावों के सुंदर झरने को
सरगम सा यह गीत बने
सजनी की इसमें प्रीत जगे

जब भावों ने हुंँकार भरी
तब क्रांति की ज्वाला जगी
सच्चाई की राह दिखाती
कलम की तलवार काम कर जाती

भावनाओं का जन्म न होता
तो सुंदर सरल गीत नहीं बनता
साहित्य की नदिया न बहती
जीवन में सरगम न रहती

आओ हम सब मिलकर
इसके प्रवाह में बह जाएं
भावों के सुंदर मोती से
काव्य का सुंदर हार बनाएं
***अनुराधा चौहान***

Monday, January 21, 2019

हे कृष्ण

कहां छिपे हों गिरधर नागर
नदियां सूखी रीति गागर
मानवता की सुन लो पुकार
बढ़ा चहुं ओर अत्याचार

दर्शन दो श्री बनवारी
कहां छिपे हों कृष्ण मुरारी
त्राहि-त्राहि करे जनता सारी
बढ़ गए चहुं ओर भ्रष्टाचारी

आओ अब सुदर्शन धारी
चैन पड़े न अब गिरधारी
बढ़ गए चहुं ओर दुराचारी
कृपा करो श्री बनवारी

मासूम हंसी मुरझाने लगी हैं
कलियां खिलते ही मरने लगी हैं
इससे भी ज्यादा बुरा क्या होगा
जब नारी का जीवन न होगा

सबके कष्ट मिटाने वाले
मनमोहन मुरलिया वाले
धरती की संताप हरो तुम
लेलो अब अवतार हे कृष्ण
***अनुराधा चौहान***


चित्र गूगल से साभार

Saturday, January 19, 2019

यादों की परछाइयां

कुछ लम्हे दिल में बस जाते
तो मिटाएं नहीं मिटते
यादों में उनके चित्र
सदा ज़िंदा ही हैं रहते

बचपन से लेकर जवानी
कुछ यादें नई पुरानी
कुछ धुंधले होते चित्र
कुछ तस्वीरें हैं सुहानी

ज़िंदगी ने हम सभी को
कई रंग है दिखलाए
कुछ कीमती से चित्र हैं
जो दिल में हैं समाएं

कभी-कभी ज़िंदगी में
हालात बदल जाते हैं
समय के साथ लोगों के
ज़ज्बात बदल जाते हैं

बिखर जाते हैं रिश्ते
आ जाती हैं दूरियां
कभी-कभी हालात भी
बढ़ा देतीे हैं मजबूरियां

कितना भी करो दिखावा
रखो चाहें कितनी दूरियां
मिटा न सके दिल से कोई
यादों की परछाइयां

कुछ लम्हों के चित्र
कभी मिट नहीं सकते
दूर हो चाहे कितने भी
पर रिश्ते मिट नहीं सकते
***अनुराधा चौहान***

Friday, January 18, 2019

मानवता का कत्ल

मानवता चीख-चीख कहती
कहांँ हो मेरे रखवालों
कहांँ जाकर छुपे हो तुम
जो अब नजर नहीं आते
देखो कितनी बेबस और
लाचार इस धरा की कहानी है
कटते वन उपवन इसके
धूप से जलती छाती है
मानवता का कत्ल देखो
फुटपाथ पर बचपन भूखा है
नारी की व्यथा क्या कहूंँ
बच्चियों का बचपन भी फीका है
नहीं बचती हैं मासूमियत
धरती के दरिंदों से
व्यथा रो-रोकर कहती है
मानवता अपने रखवालों से
जरा तो रहम कर जाओ
मेरा अस्तित्व बचालो तुम
मानवता अगर मर गई
जीना दुश्वार हो जाएगा
आसमान टूट कर गिरेगा
धरती का कलेजा भी फट जाएगा
मिट जाएगी यह सृष्टि
वजूद सबका ही मिट जाएगा
***अनुराधा चौहान***

चित्र गूगल से साभार

Thursday, January 17, 2019

तलाश

तलाश किसी की 
पूरी नहीं होती
कोई न कोई कमी 
बनी ही रहती
किसी को रहती 
प्यार की तलाश
कोई किसी से 
मिलने को बेकरार
पैसों पर बैठे हैं 
पर पैसों की तलाश है
गरीब घर में भूखे हैं
रोटी की तलाश है
बच्चे तलाशतेे रहते 
चारदीवारी में अपने
गुम होते बचपन 
की मस्ती को
माँ-बाप  को रहती
बुढ़ापे में बच्चों के साथ
कुछ सुकून के 
पलों की तलाश
तलाशते रहते हैं 
सुकून सभी पर किसी 
को मिलता है नहीं
हरदम सभी को रहती
अपनेपन की तलाश
बचपन से जवानी तक सब
करते कुछ न कुछ तलाश
***अनुराधा चौहान***

Wednesday, January 16, 2019

मानवता का अविष्कार

आवश्यकता ने हमें 
हालातों से लड़ना सिखाया
सपने पूरे करने का
हौसला मन में आया
धीरे-धीरे होने लगे
अविष्कार साधन के
लोगों को जीना आया
मानव जीवन बना संघर्ष को
लोगों को अब समझ आया
नित नए होते अविष्कार
इंसान चाँद तक हो आया
अब दिन दूर नहीं जब
मंगल पर बन जाए आशियाना
हथियारों के होते अविष्कार
दुश्मन डर से थरथराया
आवश्यकता ने हमें
अविष्कार करना सिखाया
अविष्कार ही मानव जीवन में
सुख के लम्हे लेकर आया
पर मानवता प्रथम धर्म हो
हो यह अनोखा अविष्कार
सबसे सुंदर हो जाएगा
फिर सारा संसार
***अनुराधा चौहान***

Monday, January 14, 2019

पत्थरों के शहर में

पत्थरों के शहर में
ज़ज्बात बदल गए
मिट गए आंगन
लोगों के हालात बदल गए
हवाओं को रोकने लगी
यह ऊंचीअट्टालिकाएं
सांप सी फैली सड़कों ने
डसा मानव की खुशियों को आज
हवाओं में जहर घोल रही 
सड़कों पर दौड़ती गाड़ियां
बीमारी को जन्म देती
प्रदूषण की बढ़ती मात्रा
शहर की जिंदगी ने
दिए जितने ऐशो-आराम
बदले में हमसे छीनी
सुकून की सांसें है
खान-पान का स्वरूप
भी बिगड़ा हुआ है
रंग, और रसायनों में
लपेटा शहर का खाना है
पर्यावरण को स्वच्छ बनाते
 पेड़ निरंतर कटते जाते
नदी नाले गायब करके
उन पर बंगलें बनते जाते
शहरों की मशीनी जिंदगी
में इंसान मशीन बन गया
स्वच्छ हवा-पानी बिन
बीमारी का पुतला बन गया
अच्छी शिक्षा और रोजगार
भी देता हमें शहर है
अराजकता और गुंडागर्दी का
भी दिन-प्रतिदिन बढ़ता कहर है
***अनुराधा चौहान***

Sunday, January 13, 2019

काश

तेरे होने का ख्याल
दिल से जाता नहीं
तू यहीं है यहीं कहीं है
यह एहसास जगाता है

काट कर खुशियों की डोर
तुम चले गए जाने कहांँ
जुड़ सके काश यह डोर
ऐसा कब होता है यहांँ

काश मिल जाती कोई पतंग
जो पंँहुचा देती मेरा पैगाम
किस गांव जा बसे तुम
नहीं है वहां का कोई नाम

शायद इतना सा ही था
तेरे मेरे साथ का बंधन
तुम्हें भूल पाऊंँ कभी भी
ऐसा नहीं आता कोई पल

रिश्ते की इस बंधन का
बड़ा कमजोर था धागा
किस्मत से न लड़ पाया
ज़िंदगी से टूट गया अभागा

हाथ में ले टूटी डोर
सूने आकाश को देखते हैं
दिख जाए कहीं वो सूरत
जिसके लिए दिन-रात तरसते हैं

बहुत कमजोर होती है
ज़िंदगी की यह लड़ियांँ
कब टूटकर बिखर जाएंँ
जीवन की यह घड़ियांँ

अनमोल धरोहर जीवन की
होते हैं यह रिश्ते सभी
इन्हें संजोकर रखना
रिश्ते बिना जीवन नहीं

तब तक कदर नहीं होती
जब रिश्ते करीब होते हैं
बिछड़ जाते हैं जब कहीं
तो मिलने को तरसते हैं
***अनुराधा चौहान***

चित्र गूगल से साभार

Saturday, January 12, 2019

वादों का भ्रम टूटा

तेरी बातों का भ्रम छूटा 
दिल मेरा टूटा मगर
तेरे वादों का भ्रम टूटा
छाई थी तेरे प्यार की धुंध
अब छंटने लगी है
तन्हाईयां बन गई साथी
रुसवाईयां डसने लगी हैं
सोचती हूं क्यों तेरे
वादों पर यकीन करके चली
भूल जाना चाहती हूं
मैं तो अब तेरी गली
मुकद्दर में शायद मेरे
ग़म बेतहाशा लिखे थे
इसलिए आज हम तुम
अजनबी बनकर चले थे
यह हसीं फिजाएं कभी थी
गवाह हमारी खुशियों की
आज ग़म के दायरे में
यह सिमट कर रह गई
पेड़ों से गिरते पत्ते
कभी लगते थे फूलों से
यह भी चुभने लगे हैं
आज मेरे बदन को शूलों से
सोचती हूं यह शाम ढले
एक नई सहर हो जाए
भूल जाऊं मैं तुम्हें
तो यह जिंदगी बसर हो जाए
***अनुराधा चौहान***

Friday, January 11, 2019

सरगम

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सात सुरों की सरगम 
जीवन में प्रीत भरे
जीवन संगीत बने
भावों के रंग भरे
रिश्तों की डोर से
सजते हैं सुर यहां
खुशियों के बोल से
सजते हैं गीत यहां
छोटी छोटी बातों में
बन जाते हैं तराने
अपनों का साथ हो
तो जीवन के रंग सुहाने
मत रूठों अपनों से
यह छोटी सी जिंदगानी
कल हो ना हो यह किसने जानी
हंसो गाओ मौज मनाओ
जीवन को संगीत बनाओ
जीवन तो आना जाना है
खुशियों के फूल खिलाना है
भूलकर कड़वी यादों कों
जीवन को सरगम बनाना है
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

Tuesday, January 8, 2019

सब कलयुग की लीला

कभी मिले थे दो दिल
बने एक-दूजे का आसरा
मिलकर दोनों साथ चले
जीवन की मुश्किल में
एक-दूजे के साथ खड़े
धीरे-धीरे परिवार बना
परिवार भी साथ चला
बीतने लगा वक्त तेजी से
बदलने लगे हालात भी
सबकी जरूरत पूरी करते
अपने सब सपने भूल गए
जरूरत पूरी होते ही
संगी,साथी दूर हुए
आसरा देने का आया समय
बच्चों ने भी छोड़ा साथ
रह गए वहीं खड़े अकेले
सफ़र जहां से शुरू किया
कलयुग का सच यही है
बुढ़ापा है आज बेआसरा
बच्चों का नहीं कोई सहारा
पाल-पोस कर बड़ा करो
काबिल बनते उड़ जाते
अपनी दुनिया अलग बनाते
माँ-बाप के लिए जगह नहीं
दोस्तों में रुतबा दिखाते
सबके बीच भले बन जाते
यह सब कलयुग की लीला
जिसने संस्कारों को छीना
इसलिए समय रहते काम करो
बुढ़ापे का इंतजाम करो
जब अपनी औलाद
साथ छोड़ जाती है
तो दूजे से क्या फरियाद करो
दे सको दूजों का आसरा
ऐसा कुछ सब काम करो
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

Monday, January 7, 2019

दिल मचल उठा

दिल मचल उठा
रात ने अंगड़ाई ली
बर्फीली हवाओं में
तेरी यादों ने आवाज़ दी

जम गए थे कहीं
दिल के जो जज़्बात थे
फिर उमड़ कर छा रही
प्यार की बदली कहीं

एक सुखद एहसास
जिस्म का पोर-पोर भिगो रहा
आ रहे हो लौटकर तुम
मन मयूर नाच रहा 

बहुत लंबी थी इस बार
इंतजार की यह घड़ियां
फिर कोई चुरा न ले तुम्हें
आ बांध लें हम हथकड़ियां

इस बार न जाने दूंगी
तुमको मैं नजरों से दूर
पलकों में बसाकर तुम्हें
बना लूंगी अपनी आंखों का नूर
***अनुराधा चौहान***