दीप जो मन के बुझे थे
आज फिर उनको जला लूँ।
घिर न जाए तम घना फिर
रोशनी अंतस जगा लूँ।
तोड़ने बंधन चली अब
भावना की जोर आँधी।
मन घटाएं जोर गरजी
रह गई क्या आस आधी?
नृत्य बूँदों का शुरू है
साज कुछ मैं भी मिला लूँ।
दीप मन के....
गर्जना का शोर सुनकर
याद की गठरी खुली थी।
कुछ बरसती बारिशों में
भीगकर हल्की धुली थी।
आज नयनों से बहे जो
स्वप्न पलकों में छुपा लूँ।
दीप मन के......
चुन रही हूँ पल खुशी के
हार सुंदर इक बनाना।
आस की लौ में चमकता
भीत पर दर्पण पुराना।
भूल के बातें पुरानी
आज मन को मैं मना लूँ।
दीप मन के.....
भोर की किरणें सुहानी
गा रही हैं गीत अनुपम।
ओस के इन आँसुओं से
भीग किसलय झूमते नम।
सुन हृदय की भावनाएँ
बोल क्या फिर से सुला लूँ?
दीप मन के.....
झूठ की जंजीर जकड़ी
वर्जनाएं बंध तोड़े।
मौन का लावा उफनकर
लीलने हर रीति दोड़े।
प्रश्न कुछ अंतस तड़पते
बोल दूँ या फिर बचा लूँ?
दीप मन के....
©® अनुराधा चौहान'सुधी' ✍️
चित्र गूगल से साभार