Followers

Friday, December 28, 2018

साल बदलते रहते हैं

वक्त भागता रहता है
बिना रुके अपनी रफ्तार से
दिन आते हैं दिन जाते हैं
साल बदलते रहते है
तारीख बदलती रहती है
पर ज़िंदगी में नया क्या होता है
यह सफर तो ज़िंदगी का
जहां कुछ नए रिश्ते मिलते हैं
कुछ रिश्ते दूर हो जाते हैं
अपनी यादों की सौगात देकर
बदलती तो ज़िंदगी है
जहां हर दिन कुछ न कुछ
नए अनुभव देखने मिलते है
नया कुछ सीखने मिलता है
नया साल जब आता है
पुराना साल इतिहास बन जाता है
यह सफर तो चलता ही है
पर साथ यह सीख भी दे जाता है
वक्त नहीं रुकता किसी के लिए
***अनुराधा चौहान***

Saturday, December 22, 2018

कैसे हो रहे हैं अब लोग

देख तेरे संसार में प्रभू
कैसे हो रहे हैं अब लोग 
जिनको न रिश्तों की फ़िक्र है
न अपनों का कोई जिक्र है
कैसा आया है यह दौर
कैसे हो रहे हैं अब लोग
संवेदनाएं दम तोड़ती
मतलबपरस्ती दिल में बसती
इंसानियत का नहीं कोई मोल
कैसे हो रहे हैं अब लोग
दौलत वाले दौलत को मरते
भूखे दाने-दाने को तरसते
किसान बिचारे कर्ज में दबे
पर दिखे न इनका तोड़
कैसे हो रहे हैं अब लोग
जाने कितने"कर"नए लाते
सुविधाओं के नाम से भुनाते
जनता बातों में आ जाती
वादों की गोली जब खिलाते
यहां सिर्फ वोटों का है मोल
कैसे हो रहे हैं अब लोग
घोटाले करो और उड़ जाओ
देश का धन बाहर ले जाओ
फिर भी कोई पकड़ नहीं है
पैसों की ताकत बड़ी तगड़ी है
ग़रीब पर चलता सबका जोर
कैसे हो रहे हैं अब लोग
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

Friday, December 21, 2018

माँ की मुस्कान

एक रात एक कली खिली
भोर हुई तो फूल बनी
यौवन की दहलीज पर आकर
किसी के घर का नूर बनी
बनी किसी के गले का हार
चेहरे की मुस्कान बनी
भूल गई दर्द वो अपना
सबके दर्द की दवा बनी
पायल,बिछिया,बिंदी,महावर
जीवन का श्रृंँगार बने
वात्सल्य भरा हृदय लेकर
वंश बेल को लगी सींचने
सबकी खुशियांँ चुनते चुनते
अपनी उम्र को भूल गई
छुट गया साथ साथी का
अपने दम पर खड़ी रही
वक़्त बदला,लोग बदले
पर उसकी मुस्कान न बदली
आंँखों में छिपा बहुत कुछ
पर उसकी पहचान न बदली
बालों में चांँदी सी चमक
पायल की कम होती खनक
बुझने लगी मुस्कान उसकी
मुख फेरती संतान उसकी
कल तक जो गोदी में पला था
बेटा आज दूर खड़ा था
आंँखों में छलकने लगे थे आंँसू
जिनको सबसे लगीे छुपाने
बड़े चाव से जो घर था सजाया
उस घर में पसंद नहीं उसका साया
माँ थी अपने जिगर के टुकड़े की
अब उसी की नौकरानी बन गई
फिर भी कोई गिला नहीं
बेटा फिर भी बुरा नहीं
देती रही दिन-रात दुआएंँ
बेटे की बढ़ती रहें खुशियांँ
पर आंँखों पर पट्टी बंधी थी
माँ की तकलीफ़ कहाँ दिखती थी
सबसे बड़ा बोझ थी सिर पर
कब उतरेगा फिक्र यही थी
छोड़ दिया एक दिन बेबस
वृद्धाश्रम में जाकर उसने
रोती रही बेटे को पकड़ कर
पर उसने न देखा पलट कर
कैसा यह कलयुग का प्राणी
जिसने माँ की कदर न जानी
जब तक जरूरत,तब तक मा-ँबाप हैं
चलना सीखा तो वो बेकार हैं
जिस माँ की मुस्कान थी प्यारी
देदी उसी को दर्द की बीमारी
क्यों भूलते यह दुनियांँ गोल है
जो बोओगे उससे मिले दूना मोल है
***अनुराधा चौहान***

Thursday, December 20, 2018

हाय यह भूख

भूखे पेट की माया
कहीं धूप कहीं छाया
दाने-दाने को मोहताज
फिरते लिए हड्डियों का ढांचा
काम मिला तो भरता है पेट
नहीं तो भूखे कटते दिन अनेक
बेरोजगारी बनी बीमारी
जिसने छीनी खुशियां सारी
पर परेशानी का हल निकले कैसे
मंहगाई तो कमर तोड़े ऐसे
जिनके हाथों में इसका हल है
उनको जनता की फ़िक्र किधर है
सब अपनी कुर्सी के भूखे
जनता जिए या मरे भूखे
भूख,भूख, हाय यह भूख
कहीं दो रोटी की चाहत
तो कहीं दौलत की भूख
फिर भी मिटती नहीं
पता नहीं कैसी है यह भूख
***अनुराधा चौहान***

Wednesday, December 19, 2018

रंग बदलती दुनियां



रंग बदलती 
दुनियां में
हर चीज 
बदलते देखी है
चेहरे पर 
मुस्कान लपेटे
इंसान बदलते
देखें हैं
कांँच से है 
रिश्ते आज़ के
कब टूट जाएंँ 
किसी बात पर
कदम फूंँक-फूंँक 
कर रखना
फिर भी दिलों में 
कांँटों से चुभना
गिरगिट खुद
शर्मिंदा होता
जब इंसानों को रंग
बदलते देखता
सोचता हम तो 
बेकार ही बदनाम है
रंग बदलने में तो
माहिर इंसान है
मुस्कान के पीछे 
छुपे चेहरे में
न जाने कितने 
राज गहरे हैं
कहीं दर्द छिपा 
रखें हैं तो
कहीं बेवफाई 
के मुखोटे हैं
***अनुराधा चौहान***

Sunday, December 16, 2018

संस्कार


वक्त की धारा में
धूमिल होते संस्कार
नहीं दिखाई देता कहीं
पहले जैसा 
प्यार और सम्मान
रिश्तों में भी मचा रहता
आपसी द्वंद 
सब इसी कोशिश में लगे
कि हम नहीं किसी से कम
अब तो आया 
इंग्लिश का ज़माना 
हिंदी बन गई 
पुराना ज़माना
हाय,हैलो कर होता है
अब बड़ों का सम्मान
कौन चरणस्पर्श कर
रीढ़ की हड्डी 
को करे परेशान
भूल गए इस संस्कार को
बड़ों के आदर-सत्कार को
आशीर्वाद में उनसे
मिलने वाले प्यार को
अपनी सभ्यता संस्कृति का
घोंट कर गला
कौनसा संस्कार अपने
बच्चों को दोगे तुम भला
ऊपरी चकाचौंध तो कुछ
दिन रंग दिखाती है
अगर संस्कार अच्छे हैं
खूबसूरती दिन पर दिन
निखरती जाती है
इसलिए हमेशा करो बड़ों
का सम्मान क्योंकि 
उनसे मिलता है 
हमें उत्तम ज्ञान
***अनुराधा चौहान***

Thursday, December 13, 2018

सर्द हवाएं

चलने लगी सर्द हवाएंँ
शिशिर ऋतु का 
एहसास कराए
आगोश में अपने लपेटे
कहीं कोहरे की घनी चादर
के बीच फंसी सूर्य की
किरणें बेताब है ज़मीं छूने को
कहीं गुनगुनी धूप 
तन को भाती
कहीं ठंड में ठिठुरते लोग
फटी चादर में 
तन को ढकने का
जबरन प्रयास करते दिखते
कहीं लोग अलाव जलाकर
मौसम का मजा लेते दिखते
जमने लगी बूंँदें ओस की
पुष्पों की पंँखुड़ियों पर
ढुलक कर समांँ जाती
धूप देख भूमि 
के आगोश में
कभी कभी 
सर्द हवाएंँ भी
तन जलाने लगती हैं
जो खो गया जीवन में
वो यादें ताजा हो जाती है
बीतने लगता है वर्ष
जाने कितनी यादें साथ ले
इस आस के साथ
आने वाला वर्ष 
अच्छा गुज़रे
जब चले सर्द हवाएंँ तो
शिशिर भी बड़ा 
सुहाना लगे
खिले सुख की धूप
मौसम यह मनभावन लगे
***अनुराधा चौहान***

Wednesday, December 12, 2018

जिसके हम हों राजा-रानी

शिशिर की 
शीतल रातें
ढोलक पर 
पड़ती
जब थापें
मधुर मिलन के 
गीत गाती
गुजरिया 
झूम झूमकर 
नाचें
बातें प्रीत की 
करनी हैं बाकी
चाँद तारे बने 
हमारे साक्षी
क्यों सजनी 
तू शरमाए
चलो हम गीत 
मिलन के गाएं
ठंडी सर्द 
हवाओं में
सुंदर मस्त 
फिज़ाओं में
आ तुझको 
मैं प्यार करूं
आ तेरा 

श्रृंगार करूं
मैं ले आया 
यह सुंदर हार
जो बने तेरे 
गले का श्रृंगार
आ तुझको 
पहना दूं प्रिय
दिल का हाल 
सुना दूँ तुझे
यूं चुप न बैठो 
कुछ तो कहो
कुछ मेरे संग 
सपने बुनो
तू मेरी मैं 
तेरा प्रिय
कहीं बीत 

न जाए 
रैना प्रिय 
आ तुझको 
सीने से लगाकर
अपने दिल में 
तुझे बसाकर
आओ लिखे 
आज़ प्रेम-कहानी
जिसके हम हों 
राजा-रानी

***अनुराधा चौहान***(चित्रलेखन)

जिंदगी

कोई जब ज़िंदगी में 
खास होता है
उसका वक़्त पर 
एहसास नहीं होता
जब कहीं वो आंँखों से 
ओझल हो जाता है
तब अपनी गलती का 
एहसास होता है
ऐसे ही माता-पिता की 
अहमियत 
तब तक समझ नहीं आती
जब तक वो हमारी 
जरूरत पूरी करते रहते हैं
जब वो लाचार हो जातें हैं
या कभी अचानक
सिर से हट जाता 
पिता का हाथ
आश्वासन देने तो 
बहुत लोग हैं आते
पर साथ देने वाला 
कोई हाथ नहीं आता
तब होता है पिता की
अहमियत का एहसास
समय रहते करलो
हर रिश्ते की कदर
ज़िंदगी मौका देती है
तो धोखा भी दे जाती है
***अनुराधा चौहान***

Saturday, December 8, 2018

नारी है इसलिए अटल खड़ी है


आंखों में उसके चंचलता
बातों में उसके मोहकता
चलती है जब बल खाकर
लगती जैसे हो मधुशाला

हो स्वर्ग से उतरी हूर कोई
इतनी सुन्दर जैसे हो परी
दिल ममता से भरा हुआ
आंखों में दर्द है कहीं छुपा

तन से कोमल मन से कोमल
चंचल चितवन जैसे कमल नयन
गाल गुलाबी फूलों जैसे
फिर भी चुभती सबको शूलों जैसी

नारी बिना कोई मर्द नहीं
फिर भी दिखता उसका दर्द नहीं
चंचल मन वो सबको दिखाती
अपनी मजबूरी सबसे छुपाती

कुदरत का वो अनमोल नगीना
जिसने की सृष्टि की रचना
सदियों से मन में चाह लिए
उसको भी पूरा मान मिले

औरत है नहीं कोई खिलोना
क्यों उसका सुख-चैन है छीना
देदो उसको भी अधिकार सभी
होंठों पर खिल उठे चंचल हंसी

अपने आत्मसम्मान की खातिर
लड़ती रही और लड़ती रहेगी
चंचल,ज्वाला दोनों रूपों में
नारी है इसलिए अटल खड़ी है
***अनुराधा चौहान***

Wednesday, December 5, 2018

रिश्तों के मायने


भीड़ कितनी भी हो मगर
पर तन्हाईयां रास आतीं हैं
होती है कुछ वेदना भरी 
स्मृतियां मन मस्तिष्क से 
नहीं निकल पातीं हैं
ऐसे ही जब कोई अपना
असमय ही साथ छोड़ जाता है
मन में सिवाय वेदना के 
कुछ भी नहीं रह जाता है 
इक क्षण में बिखर जाते हैं
रिश्तों के मायने टूट कर
द्वेष पाल कर बैठ जाते हैं
वेदना पहुंचाने मेंं अक्सर
जीवन में कई मोड़ लेकर
आते हैं जिंदगी के रास्ते
कहीं कहीं फूलों भरे हैं
कहीं भरे असंख्य कांटो से 
कभी कभी कह दी जाती है
कुछ बातें अनजाने में
एक पल भी नहीं सोचते हैं
हम उसे वेदना पहुंचाने में
लौटकर नहीं आती हैं
जो बातें ज़बान से निकले
मन ही मन तड़पातीं हैं
जो गर ख्याल से न निकले
क्यों खुद की खुदगर्जी में
इतना खो जाते हैं लोग
वेदना पहुंचाकर मन को
फिर हो जाते हैं मौन
कोशिश हर इंसान की
अपनेपन की होनी चाहिए
कभी भूले से न देना किसी को दर्द
वो इंसानियत होनी चाहिए
***अनुराधा चौहान***

गूंज उठी मधुर शहनाई

गूंज उठी मधुर शहनाई
सजी चूड़ियां गोरी की कलाई
चल दी गोरी पिया की गली
आंखों में ढेरों सपने लिए
होंठों पर ढेरों नगमे लिए
ओढ़ के प्रीत की चुनरी
मां की लाड़ली दुल्हन बनी
चल दी गोरी पिया की गली
नये रिश्तों में रचने बसने
प्रीत के रंग में खुद को रंगने
शहनाई सा मधुर मिलन हो
ज़ीवन की सुंदर सरगम हो
महक उठी मन की फुलवारी
बाबुल के आंगन की खुशियां चली
चल दी गोरी पिया की गली
जीवन की रीत यह कैसी
छूट गई डगर पीहर की
घड़ी बिछड़ने की अब आई
कानों में चुभने लगी शहनाई
आंखों में ढेरों आंसू लेकर
घर की खुशियां साथ लेकर
भाई-बहन सब पीछे छोड़कर
गूंजती शहनाईयों में
थाम साजन का हाथ चली
चल दी गोरी पिया की गली
***अनुराधा चौहान***

Monday, December 3, 2018

साया साथ न छोड़ें


जब तक जीवन
चलता जाए
साया साथ न छोड़ें
जाने कितने रूप रंग में
जीवन में रंग जोड़े
पैदा होते ही मिला मुझे
माँ के आंचल का साया
लाड़ प्यार से जिसने
मेरा ज़ीवन है चमकाया
धीरे-धीरे बढ़े हुए तो
पिता बने फिर साया
जीवन की हर 
धूप-छांव में मुझको
चलना सिखाया
फिर मिला मुझे जीवन में
साया हमसफ़र का
बड़ा सुहाना बना दिया
सफ़र उसने जीवन का
खुद का साया
साथ तभी तक
जब तक यह जीवन है
साया रूठा जीवन टूटा
साया का भी जीवन है
***अनुराधा चौहान***

Sunday, December 2, 2018

छाई हुई धुंध है

गहन है अंधकार
छाई हुई धुंध है
अजीब सी ख़ामोशी
विचारों का द्वंद है
भेदती इस
ख़ामोशी को
आवाज़ें गहरी 
सांसों की
मौन में भी 
पसरी है
कोई कहानी
गहरे ख्यालों की
आसमां है टूटते 
तारे को देख मौन
हम टूट कर बिखरें
तो लगता है अब 
हमारा कौन
मन में उठतेे इन
विचारों का नहीं
कोई जवाब है
टूटकर बिखरना
गिर कर संभलना
जिंदगी पथ पर
सुख-दुख अपार है
गहन अंधकार में
आज छाई धुंध है
होगा प्रकाश
कल खुला आकाश है
***अनुराधा चौहान***

Friday, November 30, 2018

दिल से इक आवाज़ आई

दिल से इक आवाज़ आई
क्यों ओढ़ ली तूने तन्हाई
क्या मज़ा है चुप-चुप जीने में
कुछ दर्द छुपा क्या सीने में

फिर मन ने भी आवाज़ लगाई
कितनी सुहानी सुबह है आई
क्यों रोकर इसको खोते हो
क्यों नहीं खुल कर जीते हो

सुन कर दिल की आवाज़े
खोले फिर मन के दरवाजे
प्रकृति की मोहक सुंदरता
देख बहने लगा भावों का झरना

सूरज की चमकती किरणों से
जब धरती ने अंगड़ाई ली
मन में उठते विचारों ने फिर
बन कविता अंगड़ाई ली

सुन कर प्रकृति की आवाज़ें
कहीं कोयल कूके,हवा चले
हिलते पेड़ों की सरगम बहे
कल-कल करती नदियाँ बहें

अब तक खुद में खोया हुआ
इन आवाजों से दूर रहा
ख़ामोश बहारें सुंदर नजारे
ख़ामोशी से आवाज़ लगाते

कितना कुछ कहती यह घाटियां
ऊंँची सुंदर पर्वतों की चोटियांँ
सुनना है अगर इनकी आवाज़ें
मन में सुंदर एहसास चाहिए

शोर-शराबा,हल्ला-गुल्ला
यह कान फोड़ती आवाज़ें
इन सब से तो अच्छी होतीं
ख़ामोश प्रकृति की आवाज़ें
***अनुराधा चौहान***

Thursday, November 29, 2018

मन दर्पण


मन दर्पण आशा ज्योती
रंग भरें इसमें भावों के मोती
भावनाओं का सागर अपार
कितना सुंदर यह संसार
सबके मन में प्यार बसा है
शब्दों का संसार बसा है
साहित्य के रंगों में रंगी है
मन के दर्पण में इसकी छवि है
यह रचनाएं दिल की धड़कन
इनमें बसा आज और कल
आत्मा से निकले बोल
इनके शब्द बड़े अनमोल
प्रीत की रीत सदा चली आई
हमने भी यह रीत निभाई
हम साथी भावों के सच्चे
छूटे न यह रंग हैं पक्के
मन का दर्पण झूठ न बोले
ख्व़ाबों के नित बने घरोंदे
दिल में जो बसती सूरत है
दर्पण में वही दिखती मूरत है
मन का दर्पण सदा रहे साफ
सबसे रखो प्रेम सद्भाव
***अनुराधा चौहान***

Wednesday, November 28, 2018

संस्कृति की पहचान ग्रंथ


युगों-युगों का राज बसाए
रहस्य अनेकों इनमें छुपाए
ऋषि मुनियों का यह वरदान
यह ग्रंथ संस्कृति की पहचान
भुगोल, विज्ञान और गणित
भौतिक ज्ञान का अनुपम भंडार
इन महान ग्रंथों में भरा है
विज्ञान के रहस्यों का ज्ञान
वेद,पुराण श्री मद्भागवत गीता
ग्रंथों में बसे राम और सीता
श्री रामायण अनुपम कृति
जिसमें श्री राम की महिमा बसी
महाभारत कृति ऋषि व्यासजी की
मेघदूत,कालिदास, श्रेष्ठ ग्रंथ
रामचरित मानस,सूरसागर
अद्भुत ग्रंथों में ज्ञान का सागर
रस में भीगी हमारी सभ्यता
उत्तम चरित्र की देती शिक्षा
धर्म-पथ और सत्कर्म का
देकर हमको संस्कार
संस्कृति की पहचान ये ग्रंथ,
भारत की शान यह ग्रंथ
***अनुराधा चौहान***

Tuesday, November 27, 2018

विधाता की अनमोल कृति


हंसती मुस्कुराती चंचल सी
मन को भाती मनमोहिनी सी
यह प्रकृति का अनुपम उपहार
बेटियां हैं घर का शृंगार
अपने कोमल निर्मल मन से
करती शोभित दो-दो घर
माँ-बाप के दिल का यह टुकड़ा
सुंदर इनका चाँद सा मुखड़ा
करती शोभित घर पिया का
करती रोशन नाम पिता का
प्रभु की यह अनमोल कृति है
उपहार में जो सबको मिली है
फिर भी इसका कोई मोल न जाने
मिलते सदा ही इसको ताने
टूटती बिखरती उठ खड़ी होती
मुश्किल में भी यह डटी रहती
हर जगह तिरस्कार है पाती
फिर भी सदा रहती मुस्कुराती
कोई न पाए इसको तोड़
बेटियां है पर नहीं कमजोर
माँ काली का है यह वरदान
बेटियां विधाता का अनुपम उपहार
सृष्टि की यह अनमोल कृति
नारी रिश्तों की है जननी
***अनुराधा चौहान***

Thursday, November 22, 2018

थोड़ा रूमानी हो लेते हैं

उम्र ढलती है ढलती रहे ग़म नहीं
तेरी चाहतों में जिक्र मेरा हरपल रहे
तेरे रूमानियत पर फ़िदा मैं रहा
प्यार मेरा कभी भी कम न हुआ
तेरी आंखों की मस्ती में डूबा सदा
तू सलामत रहे बस यही है दुआ
उम्र कोे रख परे बैठ पहलू में मेरे
बीते लम्हों की यादों में जीतें हैं फिर
थोड़ा तू कुछ कहे कुछ मैं भी कहूं
थोड़ा रूमानी होकर जी लें यह पल
खुशबुओं सी बिखरती यह शामें रहें
मैं तेरे दिल में रहूं तू मेरे दिल में रहे
शाख पे जो खिले फूल छोड़ चले गए हमें
हम जहां से चले थे फिर आ गए वहां
अब सुख-दुख में एक-दूजे के साथी हैं हम
जिंदगी रोकर नहीं हंस कर काटेंगे हम
पुरानी यादों में फिर से खो जातें हैं
आज थोड़ा रूमानी होकर जी जातें हैं
***अनुराधा चौहान***

Wednesday, November 21, 2018

पुष्प धरा का श्रृंगार

पुष्पों की सुंदर सौगात
करती धरा का श्रृंगार
लाल, गुलाबी,पीले
पुष्प यहां कई रंग के खिलते
लाल पुष्प कुमकुम सी आभा
सबके मन को बहुत लुभाता
पीले पीले पुष्प सुनहरे
सोने सी छटा बिखेरे
सफेद पुष्पों की फैली चादर
जैसे आसमां से उतरा बादल
गाल गुलाबी नवयौवना के
पुष्प गुलाबी कोमल ऐसे
धरती की धानी चूनर भी
सतरंगी पुष्पों से सजी है
करने धरा का यह श्रृंगार
प्रभू की यह अनमोल कृति है
सुंदर सुंदर बाग बगीचे
सब इनकी खुशबू से महके
बने प्रभू के गले का हार
पुष्प बिना अधूरा श्रृंगार
***अनुराधा चौहान***

Tuesday, November 20, 2018

खो गई हंसी

------***-------
जिनकी शरारतों से
गूंजती थी हर गली
आज किताबों के बोझ तले
खो गई उनकी हंसी

शरारतें उनकी करती थी
हमको हंसने पर मजबूर
आज अकेले रहते रहते
खुद गए हंसना भूल

रिश्तों की बगिया में कभी
खिलता था बच्चों मन
आज शरारत कैसे करें
सूना है उनका बचपन

अब बैठना सीखते ही
बालवाड़ी की ओर चले
मां-बाप बिचारे अॉफिस में
वो आया की गोद में पले

घर में बंद,स्कूल में बंद
बंधा-बंधा उनका जीवन
शरारतें करने बैठे तो
कैसे पढ़ाई में आएं अव्वल

बदलते हैं तौर तरीके
बचपन उनका महकाते हैं
साथ उनके बच्चे बन कर 
हम भी शरारत करते हैं
***अनुराधा चौहान***

Friday, November 16, 2018

अतिथि देवो भव

अतिथि देवो भव की
रीत है सदियों पुरानी
पीढ़ी दर पीढ़ी हमने
यह सीख सदा ही जानी
वो भी क्या दिन थे
जब रिश्तेदारों का
होता आना-जाना था
यादों की पोटली से
निकलता पुरानी
यादों का बड़ा खजाना था
हर दिन होता उत्सव सा
रातें होती उजियारी सी
खट्टी-मीठी शरारतों के बीच
कब वक़्त निकलता बातों में
धीरे-धीरे वक्त के आगे
हर चीज बदलते देखी है
वक्त की हो गई बड़ी कमी
और प्रीत बदलते देखी है
अतिथि देवो भव की भी
अब रीत बदलते देखी है
आना-जाना तो लगा रहता
पर पहले जैसी बात कहां
घूमने में निकलता वक्त सभी
बातों की किसी को फुर्सत कहां
किस्से, कहानी, हंसी ठिठोली
अब सब सपना सा लगता है
घूमों फिरो सेल्फी खींचो
बस वही अब सब का सपना है
***अनुराधा चौहान***

Wednesday, November 14, 2018

हम फिर से बच्चे बन जाते हैं

भूल कर सारे ग़म 
आज फिर खिलखिलाते हुए
हम फिर से बच्चे बन जाते हैं
भूल के झगड़े पुराने
आओ मिलकर गाएं गाने
दोस्ती का जश्न मनाते हैं
पहन कर रंग बिरंगी टोपियां
खुशियों को फिर बुलाते हैं
उम्र हमारी अब ढल चुकी तो क्या
दिल तो अभी भी बच्चा है
बच्चों को नहीं फिकर हमारी
दोस्तों का प्यार सच्चा है
आज उम्र को परे रखकर
गीत पुराने गुनगुनाते हैं
हम फिर से बच्चे बन जाते हैं
जन्मदिन आज साथी का 
मिलकर धूम मचाते हैं
अब साथी हम सुख-दुख के सभी
जिंदगी साथ बिताते हैं
छोड़ दिया साथ हमारे अपनों ने
साथ न छोड़ा हमारे सपनों ने
जिंदगी जब हमें यहां ले आई
तो फिर क्यों झेलें हम तन्हाई
हम तनहाईयों को ठेंगा दिखाते हैं
आज फिर खिलखिलाते हुए
हम फिर से बच्चे बन जाते हैं
***अनुराधा चौहान***

Tuesday, November 13, 2018

तरसता बचपन

गरजती घटाएं 
बरसता है सावन
कहीं सिर छिपाने को
तरसता है बचपन
न घर न घराना
न खाने का ठिकाना
कहीं अभावों में
पलता है बचपन
कहीं पैसो के बीच
खेलता है बचपन
गरीबी की गुलामी में जकड़ा है बचपन
भरने पेट अपना करते मजदूरी
दो वक्त रोटी खाने के लिए
तरसता है बचपन
कचरे के ढेर पर
सुख बीनता है बचपन
कहने को कहते सब
बचपन होता सुहाना
यह कैसा बचपन है
जो ढूढ़ता है ठिकाना
कभी बारिश से बचने 
तड़पता है बचपन
कहीं सर्द हवाओं में
दम तोड़ता है बचपन
गरीबों के बच्चों का
होता दुखदाई बचपन
बने कई आश्रम इनकी मदद को
कहीं मिलता सुख है
कहीं शोषित होता बचपन
***अनुराधा चौहान***

हम हरपल हैं खोए

क्यों दिल के तार
झनझनाते हैं
क्यों अकेले में
 हम मुस्कुराते हैं
लगाकर तस्वीर तेरी
हम सीने से अपने
यादों में तेरी
हम हरपल हैं खोए
यह तेरी मोहब्बत है
या नजर का छलावा
कैसे भूलूं तुझको
तुझे दिल में बसाया
आजा ओ हरजाई
करके बहाना
यादों में तेरी
हम हरपल हैं खोए
तन्हाइयों के बादल
आकर घिरें हैं
अश्कों के मोती
चमकने लगें हैं
कर प्रेम की बारिश
आ गले से लगा ले
देख यादों में तेरी
हम हरपल हैं खोए
जीने न देंगी
ज़माने की रुसवाई
मरने न देगा
तेरा प्यार हरजाई
चाहते हो तुम भी मुझको
मैं यह जानतीं हूँ
यादों में मेरी तुम भी
हरपल हो खोए
यादों में तेरी
हम हरपल हैं खोए
***अनुराधा चौहान***

Monday, November 12, 2018

इरादे थे मजबूत


इरादे थे मजबूत
निकल दिए सफ़र पर
राह में थे कांटे मगर
मंजिल पाने की
आस लिए
आंखों में थी
जुगनू सी चमक
छूने चल दिए आकाश
अपनों ने रोका
गैरों ने टोका
रास्तों को हमारे
पत्थरों से रोका
इरादे थे मजबूत
कदम बढ़ते गए
ख्वाबों के जुगनू
जगमगाते रहे
मंज़िल के अपनी
करीब आ गए हम
मिली कामयाबी
हालात बदल गए
अपनों के अब देखो
जज़्बात बदल गए
लगाने गले भीड़ बढ़ने लगी
क़िस्मत पर हमारे
रश्क करने लगी
सितारों से तुलना
लगी करने हमारी
मगर मस्तमौला है
फितरत हमारी
सितारा नहीं जुगनू
बन कर ही खुश हैं
मंज़िल को पाकर
हम बहुत खुश हैं
***अनुराधा चौहान***

चित्र गूगल से साभार

Friday, November 9, 2018

मीठे अनुभव

मीठे अनुभवों की
मीठी यादें देकर
पांच दिन की
धूम मचा कर
कर गई सूना मन
                          दीपावली की जगमग से
रोशन था घर और मन
मेहमानों से भरा घर आंगन
मस्ती से झूमता
बच्चों का मन
कुछ नये लम्हों की मस्ती थी
कुछ बीते लम्हों की यादें
मिलकर खूब धूम मचाई
फिर से सब हो लिए
वापस अपने घर 
लेकर नई सुनहरी यादें
चलो जिएं फिर वही जिंदगी
लेकर मन में मीठे अनुभव
चलो पल बांटें
खुशियों के हम
वक्त के साथ आगे बढ़ना
यही दुनिया की रीत है
नए अनुभवों को जीते रहना
यही जीवन से प्रीत है
***अनुराधा चौहान***

Sunday, November 4, 2018

आओ दीप जलाएं

आओ दीप जलाएं
अज्ञानता का जीवन से
मिलकर अंधकार मिटाएं
एक दीप आस का
आपस में प्रेम विश्वास का
एक दीप मोती सा
हो जीवन में ज्योती का
एक दीप वरदान का
जगती के कल्याण का
एक दीप सीप सा
यश प्रकाशित हो दीप सा
एक दीप सोने सा
वक्त नहीं अब खोने का
एक दीप प्रीत का
जीवन मधुर संगीत सा
एक दीप चाँदी सा
हो सबकी खुशहाली का
एक दीप रोली सा
जीवन में रंग भरे रंगोली सा
***अनुराधा चौहान***

चित्र गूगल से साभार    

Saturday, November 3, 2018

दीपावली का त्यौहार

मनभावन और प्यारा
       दीपावली का त्यौहार आया        
घर घर होती साफ-सफाई
माँ,दादी बनाती मिठाई
बन रही चकली,मठरी
बनते गुझिया और फरसाण
द्वार खड़ा झांके है मुन्नू
गुड़िया माँ से लाड़ लगाए
देख के इनकी बाल शरारत
दादी,बुआ मंद-मंद मुस्काए
करते मनुहार बाल सलोने
हमको मिठाई खाने को देदो
फिर न हम तुमको सताएं
फुलझड़ी पटाखे जो पापा ने दिलाए
द्वार पर जाकर फिर हम चलाएं
दीपावली का त्यौहार अनूठा
जगमग करता कोना कोना
चलो सब मिलकर दीप जलाएं
अपने घर आंगन को दीपों से सजाएं
करें हम माँ लक्ष्मी की पूजा
सबके जीवन से हो दूर अंधेरा
हो जग में ऐसा उजियारा
***अनुराधा चौहान***

Friday, November 2, 2018

गुजरा हुआ कल

झेले हैं कई मौसम
जीवन के कई रंग भी देखे
पर एक रंग नफ़रत का
मैं सह नहीं पाया
बारिश की इन फुहारों में
गूंजती थी यह गलियां
इस घर के लोगों से
आज सूनी हैं राहें
कोई नज़र नहीं आता
बेरंग से हो गए
अब सारे नजारे
घाटियां भी चीखती हैं
अपने हालातों पर
कभी सजती थी महफिलें
मेरे घर के आंगन में
बनते थे पकवान
सुगंध समाती थी दिवारों में
अब न तीज है न त्यौहार है
बस एक सूनापन है
काश कोई लौटा देता
जो मेरा गुज़रा हुआ कल है
***अनुराधा चौहान***

Thursday, November 1, 2018

ज्योति पर्व

-------*ज्योति पर्व*---------
आओ जीवन में नई ज्योति जलाएं
ज्योति पर्व हम मिल कर मनाएं
करके ज्ञान का प्रकाश
कर दो ज्योतिर्मय संसार
आओ अज्ञानता को दूर भगाएं
ज्योति पर्व हम मिल कर मनाएं
तम का न हो कोई निशान
करदो प्रकाशित हर एक कोना
कोई न रोए दुखों का रोना
भाईचारे का संदेश फैलाकर
सबके दिलों में प्यार जगाकर
आओ आशा की नई ज्योति जगाएं
ज्योति पर्व हम मिल कर मनाएं
यह तब तक संभव न होगा
जब तक हर घर शिक्षित न होगा
अंधविश्वास को दूर भगाकर
सबके मन में विश्वास जगाकर
आओ सबका जीवन सफल बनाएं
ज्योति पर्व हम मिल कर मनाएं
कब तक सब आपस में लड़ोगे
जीवन को यूं ही खोते रहोगे
मन से अपने मैल निकाल कर
करो फिर से एक नई शुरुआत
आओ एक-दूजे को गले लगाएं
ज्योति पर्व हम मिल कर मनाएं
***अनुराधा चौहान***

Tuesday, October 30, 2018

कुछ अनकही

कुछ मुलाकातों का सिलसिला चला
कुछ बातों का सिलसिला चला
कुछ कदम हम साथ चले
संग कुछ मीठे एहसास चले

वक्त फिसलता गया रेत सा
रह गए मन के जज़्बात दबे
न तुम बोले न हमने कहा
रह गए मन में ख्बाव दबे

कुछ तो कहते मैं हैं सुन लेती
संग तेरे सपने बुन लेती
कर लेती मै तेरा इंतज़ार
संग जीने का वादा करते

अब तक यह मै जान न पाई
क्यों ओढ़ ली थी तूने तन्हाई
या कसक कोई थी जो दिल में दबी 
कह देते जो बात अनकही थी

कुछ तो अपना माना होता
दिल का हाल बताया होता
शायद कुछ गम मै ले लेती
तुझको अपनी खुशियां दे देती

दे गए दर्द तुम अनजाने में
या मैंने भूल की पहचानने में
रह गई दिल की दिल में दबी
बातें थी कुछ अनकही सी
***अनुराधा चौहान***

Sunday, October 28, 2018

वोटों की प्रीत

कुछ वादों की हवा चली
कुछ मुलाकातों की हवा चली
कहीं तानाकशी का दौर है
कहीं झूठी अफवाहों का जोर है

अब बेरोजगारों का आया ध्यान
लगता है पास में है चुनाव
पेट्रोल के दाम कुछ कम हुए
लगता है अब दिन ठीक हुए

अब हर जाति धर्म की चिंता
उनके हितों का उठता मुद्दा
तब तक सबको गले लगाते
जब तक चुनाव निकट नहीं आते

वोटों की यह कैसी माया
यह कोई अभी तक जान न पाया
वोटों के लिए घर-घर जाते
फिर सालों तक नजर नहीं आते

मंहगाई बेरोजगारी इनका मुद्दा
पर ऊपरी मन से करते हैं चिंता
पर असल में यह है वोटों की प्रीत
फिर सब भूल जाते चुनाव बीत
***अनुराधा चौहान*** 

Friday, October 26, 2018

करवाचौथ

माथे पर कुमकुम सजे
करें सोलह श्रृंगार
सुहागिनें मनाएं मिलकर
करवाचौथ का त्यौहार

मेहंदी लगे हाथों में
रंग-बिरंगी चूड़ियां
आलता लगे पैरों में
छनकती हैं पायलिया

हो सुहाग अमर 
सब गाएं मंगलगीत
व्रत यह निर्जला
है चंद्र दर्शन की प्रीत

बादलों संग अठखेलियां
कर खूब सताता चांद भी
धरती पर चांद से मुखड़े
देख इठलाता बहुत वो 


देखो वो देखो चाँद नजर आया
सब सखियों का मन हर्षाया
अर्घ्य दें चंद्रमा को करें व्रत पूर्ण
खुशियों से भरा हो जीवन सम्पूर्ण
***अनुराधा चौहान***

Thursday, October 25, 2018

हर क्षण बदलता जीवन


हर क्षण बदलता जीवन
हर क्षण बदलती काया
मत करो गुरूर जीवन पर
कब बदले इसकी माया
क्षण क्षण फिसलती 
जिंदगी देती है संदेश
कर्मों की गाति तेज कर
नहीं तो हो जाएगी देर
इक क्षण का खेल यह जिंदगी
गर्व करो न इस काया पर
एक क्षण मिट जाएगी यह 
कोई जाने न मौत की माया को
क्षण में बदलती किस्मत का
खेल किसी से न जाना
कब राजा से रंक बने
कब कोई रंक से राजा
क्षण में बदलती किस्मत की रेखा
क्षणभंगुर यह जीवन बना है
इक क्षण में मिट जाने को
जिंदा दिलों में रहना है तो
 सत्कर्मों से पहचान बना लो
***अनुराधा चौहान***

दिल का सुकून


बना कर ऊंची हवेली
दिल का सुकून ढूंढ़ते हैं
खींच कर दिलों में लकीरें
मिलने की वजह ढूंढ़ते हैं
दफ़न हो रही प्रेम की दौलत
इन सजावटी दीवारों में
इस तो अच्छेे हैं वो 
जिनके घर छोटे होते हैं मगर
वो लोग दिल के अमीर होते हैं
बन जाती छोटी-छोटी खुशियां
उनके लिए एक त्यौहार
संकट में एक-दूजे साथ खड़े होते
सुख-सुविधा न हो पर दिल बड़ा रखते
छोटे से घर में भी
 मिलजुलकर रहता परिवार
प्रेम बरसता प्रतिफल वहां
होता शांति का आवास
कितने भी हो ऐशो-आराम
पर खुशियां नहीं मिलती
दिल को सुकून मिलता
अपनों के प्रेम से
***अनुराधा चौहान***


चित्र गूगल से साभार

Wednesday, October 24, 2018

ख्बावों की दस्तक


मन के सूने आंगन में
तेरे ख्बावों ने दस्तक दी
अब ख्बाव भी तेरे
ख्याल भी तेरे
मन वीणा के राग भी तेरे
यादों में तेरी सूरत
तू ही मेरी प्रीत की मूरत
तुझसे मिलने की लगन लगी
राह निहारूं घड़ी घड़ी 
सपनों में मेरे आने वाले
थाम ले आकर हाथों को मेरे
तेरे बिन दिल मेरा बैचेन
  न दिन कटे न कटे यह रैन
 दिल में दस्तक देने वाले
अपने दिल में मुझे बसा लें
मेरे जीवन का बन कर गीत
मुझको अपना संगीत बना ले
***अनुराधा चौहान***