चाँद टीका नभ सजाए
गीत गाए प्रीत के।
देख शरमाई धरा भी
धुन सुनाए रीत के।
चाँदनी भी मौन ठिठकी
बिम्ब देखा झील जो।
राह का पत्थर सँवरता
अब दिखाता मील जो।
चूड़ियाँ भी पूछती क्या
पत्र आए मीत के।
चाँद टीका……
कालिमा मुखड़ा छुपाए
भोर से शरमा रही।
रश्मियों को साथ भींगी
फिर पवन इठला बही।
बोलती रच दे कहानी
भाव लेकर नीति के।
चाँद टीका……
शब्द ढूँढे एक कोना
रिक्त अब पाती पड़ी।
लेखनी रूठी हुई है
आस कोने में खड़ी।
लेखनी को फिर मनालो
भाव लिख दो गीत के।
चाँद टीका……
अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित
चित्र गूगल से साभार