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Thursday, January 13, 2022

साँझ की देहरी


 जल गई आशा चिता में
ढूँढते अवशेष सारे।
हँस रहा है बैर बैठा
प्रीत चुन-चुन रोज मारे।

चल रही निर्मम पवन भी
विष धुआँ आकार लेता।
भस्म बन नयना कुरेदे
हृदय गहरे घात देता।
मौन भी चित्कार करता
देख सहमे चाँद तारे।
जल गई आशा .......

अश्रु के मोती समेटे
विरह सागर बह रहा है।
गूँथने विश्वास बैठा
नेह धागा जल रहा है।
पथ खड़ी हो वेदना फिर
ढूँढती नूतन सहारे।
जल गई आशा .......

साँझ की देहरी बैठी
रैन पीड़ा से जड़ी है।
काल की लकड़ी पकड़कर
आस नन्ही-सी खड़ी है।
कह रहा यह देख अम्बर
अब प्रलय से जीव हारे।
जल गई आशा .......
अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित
चित्र गूगल से साभार

3 comments:

  1. बहुत गहन भाव सुंदर व्यंजनाएं ।
    शानदार सृजन।
    सस्नेह सखी।

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  2. अश्रु के मोती समेटे
    विरह सागर बह रहा है।
    गूँथने विश्वास बैठा
    नेह धागा जल रहा है।
    पथ खड़ी हो वेदना फिर
    ढूँढती नूतन सहारे।
    मिट रही आशा .......

    मन के संताप को शब्दों में ढाला है । अंदर तक मन भीग गया ।

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  3. अश्रु के मोती समेटे
    विरह सागर बह रहा है।
    गूँथने विश्वास बैठा
    नेह धागा जल रहा है।
    पथ खड़ी हो वेदना फिर
    ढूँढती नूतन सहारे।

    बहुत मर्मस्पर्शी सृजन सखी । अति सुन्दर ।

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