मुस्कुराती भोर आकर
जब धरा का मुख निहारे।
लौटती लेकर निशा तब
साथ अपने चाँद तारे।
गूँजते आँगन हँसी से
बर्तनों की थाप सुनकर।
अरगनी पर सूखते फिर
स्वप्न नूतन नित्य बुनकर।
पायलों की छनछनाहट
गुनगुना आँगन बुहारे।।
मुस्कुराती भोर.....
आस पंछी सी चहकती
देख खिलता नव सबेरा।
धूप का टुकड़ा खिसक कर
पोंछता मन का अँधेरा।
माँग सिंदूरी लजाकर
रूप दर्पण में निहारे।
मुस्कुराती भोर.....
मुस्कुराती डालियाँ जब
प्रीत पुरवा खिलखिलाती।
सज उठी वेणी कली फिर
लग रही जैसे लजाती।
चूड़ियों की खनखनाहट
नाम बस पी का पुकारे।
मुस्कुराती भोर......
*अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित
चित्र गूगल से साभार
बहुत ही सुंदर सृजन।
ReplyDeleteसादर
हार्दिक आभार सखी
Deleteसुंदर रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया
Deleteबहुत सुंदर! श्रृंगार से श्रृंगारित सरस भाव प्रकृति से सुशोभित अभिनव नव गीत सखी।
ReplyDeleteसस्नेह।
हार्दिक आभार सखी।
Deleteवाह अनुराधा जी, हम सबकी भोर में आपने मुस्कराहट भर दी है !
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय।
Deleteवाह बेहतरीन सृजन
ReplyDeleteहार्दिक आभार भारती जी।
Deleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया
Deleteसुन्दर गीत
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया दी।
Deleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Deleteवाह! बड़ी मोहक रचना। बधाई और आभार!!!
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय।
Deleteबहुत सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया
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