अहसासों की डोर बाँधकर
मन में सुनहरे स्वप्न सजाकर
डोली में बाबुल के घर से
मैं आई तेरे संग सजना
अपने बाबुल को छोड़कर
माँ के आँगन को छोड़कर
तुझ संग अपनी प्रीत जोड़कर
मैं आई तेरे संग सजना
अब जाना क्या होता पीहर
भाई बिना जीना है दूभर
नये रिश्तों के बंध में बंधकर
मैं आई तेरे संग सजना
अब नए घर से जोडे नाते
सुनके कड़वी मीठी बातें
अपना कर्म निभाऊँ सजना
मैं आई तेरे संग सजना
छोटी सी अरज ये सुनलो
मुझे चाहें जो कुछ भी कहलो
बस पीहर का मन समझना
मैं आई तेरे संग सजना
सब-कुछ तुझपे मैं वार दूं
तेरे घर को मैं सवार दूँ
निभाऊँगी सातों वचन अँगना
मैं आई तेरे संग सजना
***अनुराधा चौहान***
प्रेम के खूबसूरत अहसास से भीगी बेहतरीन रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय लोकेश जी
Deleteप्रेम भाव से भरी यात्रा का बहुत सजीव चित्रण
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार पम्मी जी मेरी रचना को पांच लिंकों का आनंद में स्थान देने के लिए
ReplyDeleteवाह !!! बहुत खूब 👌👌👌
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार नीतू जी
Deleteप्रेम से ओतप्रोत बहुत ही सुंदर रचना, अनुराधा दी।
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत आभार ज्योती जी
Deleteसुंदर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
Deleteसमर्पण के भावों से सजी खूबसूरत रचना अनुराधा जी ।
ReplyDeleteधन्यवाद मीना जी
Deleteनारी मन की कोमल बातें....अच्छी लगी। लिखते रहें।
ReplyDeleteनई नवेली दुल्हन के मन के भाव
ReplyDeleteखुबसुरत रचना
भावपूर्ण रचना..
ReplyDeleteधन्यवाद अनिता जी
DeleteSunder rachana
ReplyDeleteआपका आभार आदरणीय
Deleteबहुत ही सुंदर। वाह
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय अमित जी
Deleteखूबसूरत प्रस्तुति ! बहुत खूब आदरणीया ।
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय राजेश जी
Deleteभावपूर्ण रचना ...
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