उमड़-घुमड़ के काली बदरी
नीले अम्बर को घेरे
शीतल ठंडी पवन मचलती
घिरते हैं मेघ घनेरे।
नयन आस से देख रहे हैं
कब ये बदली बरसेगी।
कहीं हवा उड़ा न ले जाए
ये अखियाँ फिर तरसेगी।
बैरी पवन जरा हौले चल
उड़े संग नीरद तेरे।
उमड़-घुमड़ के काली बदरी
नीले अम्बर को घेरे
हाल बेहाल करती गर्मी
धूप देह को झुलसाती।
घनघोर घटाएं घिर घिर के
जनमानस को हर्षाती।
चपल दामिनी की थिरकन ने
डाले धरती पे डेरे।
उमड़-घुमड़ के काली बदरी
नीले अम्बर को घेरे
सुनो करे पुकार वसुंधरा
अब जोर-जोर घन बरसे।
हरियाली की ओढ़ चूनरी
धरती का भी मन हरषे।
मचल रहीं नदिया की लहरें
करने सागर के फेरे।
उमड़-घुमड़ के काली बदरी
नीले अम्बर को घेरे
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
बढ़िया
ReplyDeleteधन्यवाद प्रकाश जी
Deleteबहुत ख़ूब ...
ReplyDeleteये काले बादल बरस जाएँ तो अच्छा है ... वरना हवा के रथ पे आगे निकल जाते हैं और उमस छोड़ जाते हैं ... सार्थक रचना ...
सुनो करे पुकार वसुंधरा
ReplyDeleteअब जोर-जोर घन बरसे।
हरियाली की ओढ़ चूनरी
धरती का भी मन हरषे।
मचल रहीं नदिया की लहरें
करने सागर के फेरे।
बहुत सुंदर सृजन सखी।
सार्थक पंक्तियां ।
हार्दिक आभार सखी
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 1 जुलाई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया
Deleteवाह!बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति सखी । अब तो बरस ही जाए ये बदरा ...।
ReplyDeleteबादलों को भी इस पुकार को सुनकर आना ही पड़ेगा.. मनभावन रचना !
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया
Deleteबेहद सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत बढ़िया। बादल पर लिखी रचनाएँ मुझे पसंद है।
ReplyDeleteहार्दिक आभार प्रकाश जी
Deleteबहुत सुंदर रचना सखी
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी
Deleteसुनो करे पुकार वसुंधरा
ReplyDeleteअब जोर-जोर घन बरसे।
हरियाली की ओढ़ चूनरी
धरती का भी मन हरषे।..
मन को प्रसन्नता से भरती बहुत सुन्दर रचना सखी ।
हार्दिक आभार सखी
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