क्यों अजनबी-सी लगे
हवाएँ जो मुझे छूकर चले
बेगाना-सा एहसास लिए
कहीं कोई तारा टूटे
सागर की लहरें भी चुप-सी
किनारों से हैं कुछ रूठी-सी
अपने ही अंदर कुछ बुनता-सा
सागर भी है गुमसुम-सा
घिरा है घटाओं से घनघोर
बादल हैं गुमसुम न करे शोर
अपने अंदर सैलाब को रोके
क्यों खुद को बरसने से रोके
किसी की तड़प है यह
या अजनबी का है इंतजार
क्यों कर रही फिजाएं आज़
अजनबी-सा व्यवहार
कोई आह है टूटे दिल की
जो बेचैन होती है कुदरत भी
कुमुदिनी भी खिलती नहीं
रात रही है गुजर
बस चाँद ही है पूनम का
किसी बात पर मुस्कुराता हुआ
चाँदनी को भेज ज़मीं पर
सबको जगाता हुआ-सा
शायद उसे मालूम है
इस बेचैनी का हर राज़
इसलिए चांँदनी ले आई पैगाम
किसी अजनबी के आने का आज
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
कोई आह है टूटे दिल की
ReplyDeleteजो बेचैन होती है कुदरत भी
कुमुदिनी भी खिलती नहीं
रात रही है गुजर
बहुत सुंदर.... सखी ,सादर
सस्नेह आभार सखी
Deleteवाह सुंदर भाव अभिव्यक्ति
ReplyDeleteख़ूबसूरत हृदयस्पर्शी रचना
ReplyDeleteसहृदय आभार तनु जी
Deleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeleteविरह की पीड़ा भुला !
अब तो मिलन-ऋतु आ गयी !
सहृदय आभार आदरणीय
Deleteदिल को छूती बहुत सुंदर रचना, अनुराधा दी।
ReplyDeleteसहृदय आभार ज्योती बहन
Deleteसुंदर काव्य सृजन सखी ।
ReplyDeleteसस्नेह आभार प्रिय सखी
Deleteबेहतरीन सृजन प्रिय सखी
ReplyDeleteसादर
सस्नेह आभार प्रिय सखी
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