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Wednesday, May 8, 2019

गुलमोहर की व्यथा

गुलमोहर तुम क्यों नहीं हँसते
क्यों नहीं खिलते नवपुष्प लिए
इतराते थे कभी यौवन पर
शरमा उठते थे सुर्ख फूल लिए
कर श्रृंगार सुर्ख लाल फूलों से
सबके मन को लुभाते थे
खड़े आज भी तुम वैसे ही हो
बस लगते थोड़े मुरझाए हो
बस हरी-हरी फुगनियों ने
श्रृंगार अधूरा छोड़ दिया
शायद हम इंसानी करतुतों से
कलियों ने खिलना छोड़ दिया
बरसों से एक ही भाव लिए
बिन फूलों का श्रृंगार किए
क्यों बदले हैं तेवर तेरे
नहीं खिलते अब फूल घनेरे
किस बात की व्याकुलता लिए
खड़े मखमली छाँव लिए
हरियाली का साथ न छोड़ा
फूलों से ही क्यों नाता तोड़ा
क्या क्रौध है किसी बात का
या दर्द किसी आघात का
या सीमेंट रेती के बोझ तले
दर्द से कराहती तेरी जड़ें
इसलिए कुम्लाहाए हो
तुम अपनी व्यथा छुपाए हो
खिलता मुस्कुराता यौवन तेरा
जिस मिट्टी में फला-फूला
दबी गई वो सीमेंट रेती में
इसलिए गुलमोहर में फूल न खिला
***अनुराधा चौहान***

24 comments:

  1. अब तो हर वृक्ष की यही व्यथा है हम मानवों के अत्याचार से व्यथित और उजाड़ है ।
    बहुत सुंदर रचना सखी।

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 09.09.19 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3330 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

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  3. बहुत सुन्दर सृजन अनुराधा जी ।

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    1. हार्दिक आभार मीना जी

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  4. बेहतरीन सृजन प्रिय सखी
    सादर

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  5. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन राष्ट्रगौरव महाराणा प्रताप को सादर नमन और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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  6. बहुत सुंदर... रचना ,लाजबाब

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  7. हार्दिक आभार श्वेता जी

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  8. वाह!!प्रिय सखी ,बहुत खूब!!

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  9. सही कहा सीमेंट रेती में दबे इन मूक वृक्षों की व्यथा कौन सुने...
    बहुत सुन्दर...
    वाह!!!

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  10. गुलमोहर तुम क्यों नहीं हँसते
    क्यों नहीं खिलते नवपुष्प लिए
    इतराते थे कभी यौवन पर....सुन्दर सराहनीय रचना अनुराधा जी ।

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    Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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    2. उत्तम सृजन अनुराधा

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    3. हार्दिक आभार दी

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  11. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(१०-०५-२०२०) को शब्द-सृजन- २० 'गुलमोहर' (चर्चा अंक-३६९७) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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  12. सुंदर सृजन अनुराधा जी ,प्रकृति की व्यथा को बखूबी व्यक्त किया हैं आपने ,सादर नमन

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