गुलमोहर तुम क्यों नहीं हँसते
क्यों नहीं खिलते नवपुष्प लिए
इतराते थे कभी यौवन पर
शरमा उठते थे सुर्ख फूल लिए
कर श्रृंगार सुर्ख लाल फूलों से
सबके मन को लुभाते थे
खड़े आज भी तुम वैसे ही हो
बस लगते थोड़े मुरझाए हो
बस हरी-हरी फुगनियों ने
श्रृंगार अधूरा छोड़ दिया
शायद हम इंसानी करतुतों से
कलियों ने खिलना छोड़ दिया
बरसों से एक ही भाव लिए
बिन फूलों का श्रृंगार किए
क्यों बदले हैं तेवर तेरे
नहीं खिलते अब फूल घनेरे
किस बात की व्याकुलता लिए
खड़े मखमली छाँव लिए
हरियाली का साथ न छोड़ा
फूलों से ही क्यों नाता तोड़ा
क्या क्रौध है किसी बात का
या दर्द किसी आघात का
या सीमेंट रेती के बोझ तले
दर्द से कराहती तेरी जड़ें
इसलिए कुम्लाहाए हो
तुम अपनी व्यथा छुपाए हो
खिलता मुस्कुराता यौवन तेरा
जिस मिट्टी में फला-फूला
दबी गई वो सीमेंट रेती में
इसलिए गुलमोहर में फूल न खिला
***अनुराधा चौहान***
क्यों नहीं खिलते नवपुष्प लिए
इतराते थे कभी यौवन पर
शरमा उठते थे सुर्ख फूल लिए
कर श्रृंगार सुर्ख लाल फूलों से
सबके मन को लुभाते थे
खड़े आज भी तुम वैसे ही हो
बस लगते थोड़े मुरझाए हो
बस हरी-हरी फुगनियों ने
श्रृंगार अधूरा छोड़ दिया
शायद हम इंसानी करतुतों से
कलियों ने खिलना छोड़ दिया
बरसों से एक ही भाव लिए
बिन फूलों का श्रृंगार किए
क्यों बदले हैं तेवर तेरे
नहीं खिलते अब फूल घनेरे
किस बात की व्याकुलता लिए
खड़े मखमली छाँव लिए
हरियाली का साथ न छोड़ा
फूलों से ही क्यों नाता तोड़ा
क्या क्रौध है किसी बात का
या दर्द किसी आघात का
या सीमेंट रेती के बोझ तले
दर्द से कराहती तेरी जड़ें
इसलिए कुम्लाहाए हो
तुम अपनी व्यथा छुपाए हो
खिलता मुस्कुराता यौवन तेरा
जिस मिट्टी में फला-फूला
दबी गई वो सीमेंट रेती में
इसलिए गुलमोहर में फूल न खिला
***अनुराधा चौहान***
अब तो हर वृक्ष की यही व्यथा है हम मानवों के अत्याचार से व्यथित और उजाड़ है ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना सखी।
सहृदय आभार सखी
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 09.09.19 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3330 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत सुन्दर सृजन अनुराधा जी ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार मीना जी
Deleteबेहतरीन सृजन प्रिय सखी
ReplyDeleteसादर
सहृदय आभार सखी
Deleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन राष्ट्रगौरव महाराणा प्रताप को सादर नमन और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
Deleteबहुत सुंदर... रचना ,लाजबाब
ReplyDeleteसस्नेह आभार सखी
Deleteहार्दिक आभार श्वेता जी
ReplyDeleteवाह!!प्रिय सखी ,बहुत खूब!!
ReplyDeleteसस्नेह आभार सखी
Deleteसही कहा सीमेंट रेती में दबे इन मूक वृक्षों की व्यथा कौन सुने...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
वाह!!!
हार्दिक आभार सखी
Deleteगुलमोहर तुम क्यों नहीं हँसते
ReplyDeleteक्यों नहीं खिलते नवपुष्प लिए
इतराते थे कभी यौवन पर....सुन्दर सराहनीय रचना अनुराधा जी ।
हार्दिक आभार आदरणीय
Deleteउत्तम सृजन अनुराधा
Deleteहार्दिक आभार दी
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(१०-०५-२०२०) को शब्द-सृजन- २० 'गुलमोहर' (चर्चा अंक-३६९७) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
हार्दिक आभार सखी
Deleteसुंदर सृजन अनुराधा जी ,प्रकृति की व्यथा को बखूबी व्यक्त किया हैं आपने ,सादर नमन
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी
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