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जेठ दुपहरी की तपन,नौतपा का प्रहार
विपदा यह सबसे बड़ी,करते हाहाकार
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तन जलावे धूप बड़ी,लू का तीखा वार
कैसे यह विपदा टले,प्रभू लगाओ पार
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जल संकट से हर तरफ, मच रहा कोहराम
करो सूर्य उपकार तो,मिल जावे आराम
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कुम्हलाय पेड़ पौधे,संकट बढ़ता अपार
वर्षा के दिख जाए अब,थोड़े से आसार
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***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
चित्र गूगल से साभार
बहुत बहुत सुंदर रचना दोहा छंद में बहुत प्यारा सृजन।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सखी
Deleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति, अनुराधा दी।
ReplyDeleteहार्दिक आभार ज्योती बहन
Deleteनिष्ठुर सूरज !
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
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ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (03-06-2019) को
" नौतपा का प्रहार " (चर्चा अंक- 3355) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
…
अनीता सैनी
हार्दिक आभार भारती जी
ReplyDeleteयथार्थवादी रचना..
ReplyDeleteसहृदय आभार अनिता जी
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