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Monday, July 1, 2019

ढूँढती रही वजह

सूर्योदय भी नहीं हुआ
सोता रहा घर-परिवार
खनक उठी चूड़ियाँ
छनक उठी पायल
लगी बुहारने आँगन-ड्योढ़ी
उपले-कंडे लीपापोती
रंगोली से रंगी ड्योढ़ी
ऊषा की लालिमा छाई
रसोई से बघार की खुशबू आई
लगी जगाने सबको आकर
सिरहाने रख-रख चाय
चकरघिन्नी बनी फिरे
कभी इधर तो कभी उधर
किसी को खाना किसी को कपड़े
निपटाती बच्चों के लफड़े
सास की मालिश ससुर की सेवा
बदले में कुछ मिले न मेवा
दिन बीता रात आई
पर चेहरे पर सिकन न आई
बैठी थी बस भोजन लेकर
तभी कामचोर की मिली उपाधी
भर आँखों में बड़े-बड़े आँसू
ढूँढती रही वजह
मिलने वाले रोज़ नये नामों की
अपनी मेहनत के बदले
मिलने वाली इन तानों की
कामचोरी का तमगा हासिल कर
करने लगी सोने की तैयारी
फिर सुबह जल्दी उठकर
सबकी सेवा में हाजिर होकर
अपने कर्त्तव्य का निर्वाह करने
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

10 comments:

  1. नारी जीवन को बाख़ूबी लिखा है ... पर ऐसा बोलने वाले खुद ही कमजोर होते हैं ...
    अच्छी रचना है ...

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  2. अनुराधा दी,नारी जीवन की कड़वी सच्चाई कोभूत खूबसूरती से व्यक्त किया हैं आपने।

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    1. धन्यवाद ज्योति बहन

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  3. धन्यवाद मीना जी

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  4. बहुत ही सुंदर रचना सखी

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  5. बहुत ही मार्मिक रचना प्रिय सखी नारी जीवन को आपने बख़ूबी लिखा है स्नेह और करूणा की देवी है नारी |
    बेहतरीन सृजन 👌👌

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  6. Replies
    1. जी बहुत बहुत धन्यवाद

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