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Friday, March 15, 2019

भावों से प्रीत

सीधी सच्ची सरल भाषा
लिखती हूँ मन की अभिलाषा
नित पनपते मेरे मन में
नव अंकुर अहसासों के
आशाओं की बेल पनपती
मन के कोमल भावों से
कोरे कागज पर लिखकर
करती भावों को साकार
रचनाओं के रूप से निखरे
शब्दों का यह सुंदर संसार
लय न जानूं ताल न जानूं
भावनाओं में बहना जानूं
कविता लिखूंँ या गीत लिखूंँ
भावों से अपनी प्रीत लिखूंँ
नित पनपें सबके मन में
नव गीत सुंदर भावों के
मोती बनकर चमकें सदा
शब्द सुंदर अहसासों के
चाँद की चाँदनी बनकर
मधुमास का प्यार बनकर
सावन की रिमझिम फुहारों-सी
लिखूँ मैं विरह की वेदना
सीधी सच्ची सरल भाषा
लिखती हूँ मन की अभिलाषा
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

10 comments:

  1. वाह वाह बहुत खूबसूरत मन के भाव बह प्रेम बन बह रहे।

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  2. बहुत ही सुंदर.....

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  3. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आदरणीय

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  4. वाह!!सखी, बहुत खूब !!
    लिखती हूँ मन की अभिलाषा ...वाह क्या बात है!!

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  5. बहुत सुन्दर...

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