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Saturday, March 7, 2020

अनु की कुण्डलियाँ--14


79
चमका
चम-चम चमकी चाँदनी,चमका चन्दा रात।
चंचल चितवन चंचला,करें चाँद से बात।
करें चाँद से बात,सजे आँखों में सपने।
पूछा करे सवाल, बिछड़ जाते क्यों अपने।
कहती अनु सुन बात,कहे यह पायल छम-छम।
घटे-बढ़े दिनमान,कलाधर करता चम चम।
80

माना
माना इस संसार में,भाँति-भाँति के लोग,
इसका मतलब यह नहीं,चुनो कपट के रोग।
चुनो कपट के रोग,सभी से कड़वा कहना।
मिले न शीतल छाँव,सदा ही जलते रहना।
जीवन की यह रीत,लगा है आना-जाना।
वही सुखी है आज,कर्म को ऊँचा माना।

82
कहना
कहना से मत चूकना,हो कटुु चाहें बात।
झूठी बातों से सदा,लगता मन को घात।
लगता मन को घात, नहीं दुख जाता मन से।
बातों के कटु बाण,जहर से चुभते तन से।
कहती अनु सुन बात,प्रेम से हिलमिल रहना।
रखो न मन में बात,सभी से मीठा कहना।

83
सहना
सहना पड़ता है कभी,अनचाही सी बात।
जिसके कारण ही सदा,बने अजब हालात।
बने अजब हालात,नहीं कोई गलती माने।
करते सदा विवाद,बिना ही सच को जाने।
कहती अनु सुन आज,किसी से तब कुछ कहना।
जब अनुचित हो बात,नहीं फिर चुप हो सहना।

84
वंदन
वंदन श्री हरि का करूँ,कर जोड़ सुबह शाम।
चारों तीरथ सुख मिले,विनती आठों याम।
विनती आठों याम,भजे मन हरि गोपाला।
विट्ठल विट्ठल नाम,मिले सुख जपते माला।
कहती अनु कर जोड़,लगा हरि माथे चंदन।
मिलता चरण निवास,करूँ नित हरि का वंदन।

85
आसन
सोने की मूरत बनी,वामांगी के नाम।
आसन पे बैठी सिया,हवन करें रघुराम,
हवन करें रघुराम,अश्व धरती को नापे।
रघुकुल का प्रतीक,सभी जन थर-थर काँपे।
करने लव-कुश बात,अश्व को चले पकड़ने।
क्यों छोड़ी सिय राम,बनी मूरत फिर सोने।

***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

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