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Tuesday, May 29, 2018

प्रकृति की पुकार

कहीं आंधी चले ओले गिरे
कहीं सूखे की पड़ती मार
   और प्रकृति करे पुकार
   इसका मानव जिम्मेदार
 सूखती नदियां गिरता जलस्तर
 डोलती धरती बारम्बार
   यह प्रकृति करे पुकार
   इसका मानव जिम्मेदार
कटते पेड़ उजड़ते जंगल
छिन रहा धरती का श्रृंगार
    यह प्रकृति करे पुकार
    इसका मानव जिम्मेदार
संभल जाओ नहीं तो पछताओगे
पीने का जल कहां से लाओगे
  यह प्रकृति करे पुकार
 अब तो रुक जा तू इंसान
दिन पर दिन बढ़ता प्रदूषण
करता आसमां का सीना छलनी
   यह प्रकृति करे पुकार
   इसका मानव जिम्मेदार
कंक्रीटों के बढ़ते जंगल
करते पर्यावरण पर मार
 इसलिए यह प्रकृति करे पुकार
 अब तो रुक जा तू इंसान
 अब तो रुक जा तू इंसान
       ***अनुराधा चौहान***


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