Followers

Monday, July 12, 2021

रिक्त मधुवन


टूटती जब साँस तन से
प्राण करता मौन मंथन।
याद आते उस घड़ी फिर 
मौन हुए सारे बंधन।

नीर नयनों से छलकता
पूछती फिर प्रीत मन से।
क्यों मचलता आज ऐसे
कल फिरे अपने वचन से।
रोक लो आगे बढ़े पग
साँस महका आज चंदन।
टूटती जब आस....

मोह के बंधन पुराने
हाथ से कब छूटते हैं।
छोभ अंतस में पनपता
तार मन के टूटते हैं।
यूँ हथेली रोक लेती
चूड़ियों का मौन क्रंदन।
टूटती जब आस....

दीप सारे बुझ रहे जब
घेरती हर पल निराशा ।
रोशनी की चाह मरती
दूर होती रोज आशा।
लो झड़े फिर पुष्प सारे
सूखता है रिक्त मधुवन।
टूटती है आस.....
अनुराधा चौहान'सुधी'✍️
चित्र गूगल से साभार

15 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (१४-०७-२०२१) को
    'फूल हो तो कोमल हूँ शूल हो तो प्रहार हूँ'(चर्चा अंक-४१२५)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    ReplyDelete
  2. मौन हुए बन्धनों पर जब सोचने बैठो तो तबाही सी लगती है अंदर आई हुई।
    बहुत सुंदर रचना।

    नई रचना पौधे लगायें धरा बचाएं

    ReplyDelete
  3. ये मोह ही है जो खुशियाँ भी देता है तो कभी रिक्तता भी ।
    छूटते बंधनों पर बेहतरीन अभिव्यक्ति ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीया।

      Delete

  4. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में बुधवार 14 जुलाई 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीया।

      Delete
  5. मर्मस्पर्शी.
    नमस्ते, अनुराधा जी.

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार नूपुर जी।

      Delete
  6. बेहतरीन..
    क्यों मचलता आज ऐसे
    कल फिरे अपने वचन से।
    रोक लो आगे बढ़े पग
    साँस महका आज चंदन।
    सादर..

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीया।

      Delete
  7. जीवन का एक यह भी रंग है जो अक्सर रंगहीन कर जाता है । सुन्दर सृजन ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार अमृता जी।

      Delete
  8. मन की वेदना को व्यक्त करता सुन्दर,सरस गीत ।

    ReplyDelete
  9. सच है जब जब आस टूटती है ... माह में पीड़ा उठती है ... निराशा जनम लेती है ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय।

      Delete