Followers

Monday, July 27, 2020

पलक आस संजोई

बैठ राधिका यमुना तीरे 
श्याम विरह में रोई।
भूल गए मोहे सांवरिया
सोच रही है खोई।

पनघट सूने सूनी गलियाँ
चुप हाथों के कँगना।
मुरलीधर ब्रज छोड़ गए हैं
सूने करके अँगना।
पंथ निहारूँ आस लिए मैं
बीज याद के बोई।
बैठ राधिका यमुना तीरे 
श्याम विरह में रोई।

कनक धूप में कोमल काया
मोहन झुलसी जाती।
विरह वेदना समझे बदली।
तन को आ सहलाती।
मधुवन में श्रृंगार किए नित
पलक आस संजोई।
बैठ राधिका यमुना तीरे 
श्याम विरह में रोई।

व्याकुल नैना खोज रहे हैं
भूला गोकुल ग्वाला।
सावन के हिंडोले सूने
सूना मन का आला।
पानी भरती खाली करती
मटकी फिर-फिर धोई।
बैठ राधिका यमुना तीरे
श्याम विरह में रोई।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार

16 comments:


  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 29 जुलाई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीया

      Delete
  2. मधुवन में श्रृंगार किए नित
    पलक आस संजोई।
    बैठ राधिका यमुना तीरे
    श्याम विरह में रोई।
    अद्भुत और अनुपम सृजन ।

    ReplyDelete
  3. Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय

      Delete
  4. आदरणीया मैम,
    बहुत सी सुंदर संवेदनशील रचना। राधा रानी के माध्यम से प्रेम का सुंदर वर्णन।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार अंनता जी

      Delete
  5. वाह!प्रिय सखी ,बहुत खूबसूरत भावाभिव्यक्ति ।

    ReplyDelete
  6. कनक धूप में कोमल काया
    मोहन झुलसी जाती।
    विरह वेदना समझे बदली।
    तन को आ सहलाती।
    मधुवन में श्रृंगार किए नित
    पलक आस संजोई।
    बैठ राधिका यमुना तीरे
    श्याम विरह में रोई।
    सुन्दर विम्बबों से सजा लाजवाब नवगीत
    वाह!!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार सखी 🌹

      Delete
  7. वाह!लाजवाब नवगीत सखी हर बंद बेहतरीन 👌

    ReplyDelete
  8. बेहतरीन कविता । सराहनीय प्रस्तुति ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय

      Delete