कुछ मुलाकातों का सिलसिला चला
कुछ बातों का सिलसिला चला
कुछ कदम हम साथ चले
संग कुछ मीठे एहसास चले
वक्त फिसलता गया रेत सा
रह गए मन के जज़्बात दबे
न तुम बोले न हमने कहा
रह गए मन में ख्बाव दबे
कुछ तो कहते मैं हैं सुन लेती
संग तेरे सपने बुन लेती
कर लेती मै तेरा इंतज़ार
संग जीने का वादा करते
अब तक यह मै जान न पाई
क्यों ओढ़ ली थी तूने तन्हाई
या कसक कोई थी जो दिल में दबी
कह देते जो बात अनकही थी
कुछ तो अपना माना होता
दिल का हाल बताया होता
शायद कुछ गम मै ले लेती
तुझको अपनी खुशियां दे देती
दे गए दर्द तुम अनजाने में
या मैंने भूल की पहचानने में
रह गई दिल की दिल में दबी
बातें थी कुछ अनकही सी
***अनुराधा चौहान***