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Tuesday, October 30, 2018

कुछ अनकही

कुछ मुलाकातों का सिलसिला चला
कुछ बातों का सिलसिला चला
कुछ कदम हम साथ चले
संग कुछ मीठे एहसास चले

वक्त फिसलता गया रेत सा
रह गए मन के जज़्बात दबे
न तुम बोले न हमने कहा
रह गए मन में ख्बाव दबे

कुछ तो कहते मैं हैं सुन लेती
संग तेरे सपने बुन लेती
कर लेती मै तेरा इंतज़ार
संग जीने का वादा करते

अब तक यह मै जान न पाई
क्यों ओढ़ ली थी तूने तन्हाई
या कसक कोई थी जो दिल में दबी 
कह देते जो बात अनकही थी

कुछ तो अपना माना होता
दिल का हाल बताया होता
शायद कुछ गम मै ले लेती
तुझको अपनी खुशियां दे देती

दे गए दर्द तुम अनजाने में
या मैंने भूल की पहचानने में
रह गई दिल की दिल में दबी
बातें थी कुछ अनकही सी
***अनुराधा चौहान***

Sunday, October 28, 2018

वोटों की प्रीत

कुछ वादों की हवा चली
कुछ मुलाकातों की हवा चली
कहीं तानाकशी का दौर है
कहीं झूठी अफवाहों का जोर है

अब बेरोजगारों का आया ध्यान
लगता है पास में है चुनाव
पेट्रोल के दाम कुछ कम हुए
लगता है अब दिन ठीक हुए

अब हर जाति धर्म की चिंता
उनके हितों का उठता मुद्दा
तब तक सबको गले लगाते
जब तक चुनाव निकट नहीं आते

वोटों की यह कैसी माया
यह कोई अभी तक जान न पाया
वोटों के लिए घर-घर जाते
फिर सालों तक नजर नहीं आते

मंहगाई बेरोजगारी इनका मुद्दा
पर ऊपरी मन से करते हैं चिंता
पर असल में यह है वोटों की प्रीत
फिर सब भूल जाते चुनाव बीत
***अनुराधा चौहान*** 

Friday, October 26, 2018

करवाचौथ

माथे पर कुमकुम सजे
करें सोलह श्रृंगार
सुहागिनें मनाएं मिलकर
करवाचौथ का त्यौहार

मेहंदी लगे हाथों में
रंग-बिरंगी चूड़ियां
आलता लगे पैरों में
छनकती हैं पायलिया

हो सुहाग अमर 
सब गाएं मंगलगीत
व्रत यह निर्जला
है चंद्र दर्शन की प्रीत

बादलों संग अठखेलियां
कर खूब सताता चांद भी
धरती पर चांद से मुखड़े
देख इठलाता बहुत वो 


देखो वो देखो चाँद नजर आया
सब सखियों का मन हर्षाया
अर्घ्य दें चंद्रमा को करें व्रत पूर्ण
खुशियों से भरा हो जीवन सम्पूर्ण
***अनुराधा चौहान***

Thursday, October 25, 2018

हर क्षण बदलता जीवन


हर क्षण बदलता जीवन
हर क्षण बदलती काया
मत करो गुरूर जीवन पर
कब बदले इसकी माया
क्षण क्षण फिसलती 
जिंदगी देती है संदेश
कर्मों की गाति तेज कर
नहीं तो हो जाएगी देर
इक क्षण का खेल यह जिंदगी
गर्व करो न इस काया पर
एक क्षण मिट जाएगी यह 
कोई जाने न मौत की माया को
क्षण में बदलती किस्मत का
खेल किसी से न जाना
कब राजा से रंक बने
कब कोई रंक से राजा
क्षण में बदलती किस्मत की रेखा
क्षणभंगुर यह जीवन बना है
इक क्षण में मिट जाने को
जिंदा दिलों में रहना है तो
 सत्कर्मों से पहचान बना लो
***अनुराधा चौहान***

दिल का सुकून


बना कर ऊंची हवेली
दिल का सुकून ढूंढ़ते हैं
खींच कर दिलों में लकीरें
मिलने की वजह ढूंढ़ते हैं
दफ़न हो रही प्रेम की दौलत
इन सजावटी दीवारों में
इस तो अच्छेे हैं वो 
जिनके घर छोटे होते हैं मगर
वो लोग दिल के अमीर होते हैं
बन जाती छोटी-छोटी खुशियां
उनके लिए एक त्यौहार
संकट में एक-दूजे साथ खड़े होते
सुख-सुविधा न हो पर दिल बड़ा रखते
छोटे से घर में भी
 मिलजुलकर रहता परिवार
प्रेम बरसता प्रतिफल वहां
होता शांति का आवास
कितने भी हो ऐशो-आराम
पर खुशियां नहीं मिलती
दिल को सुकून मिलता
अपनों के प्रेम से
***अनुराधा चौहान***


चित्र गूगल से साभार

Wednesday, October 24, 2018

ख्बावों की दस्तक


मन के सूने आंगन में
तेरे ख्बावों ने दस्तक दी
अब ख्बाव भी तेरे
ख्याल भी तेरे
मन वीणा के राग भी तेरे
यादों में तेरी सूरत
तू ही मेरी प्रीत की मूरत
तुझसे मिलने की लगन लगी
राह निहारूं घड़ी घड़ी 
सपनों में मेरे आने वाले
थाम ले आकर हाथों को मेरे
तेरे बिन दिल मेरा बैचेन
  न दिन कटे न कटे यह रैन
 दिल में दस्तक देने वाले
अपने दिल में मुझे बसा लें
मेरे जीवन का बन कर गीत
मुझको अपना संगीत बना ले
***अनुराधा चौहान***

पल सहेज लें तस्वीर बना

 
खुशियों भरा यह सुंदर समां
दिल में रहे हरदम बसा
जीवन की अद्भुत यादों के
पल सहेज ले तस्वीर बना

सुंदर प्रकृति का नज़ारा
मन को भाए प्यारा प्यारा
मन की चिंताओं को भूल
समेट रहे सब खुशी भरपूर

हरदम ऐसे पल रहे पास
जीवन में न हो कोई उदास
निराशा को झटक एक तरफ
आ रख लें सुंदर तस्वीर खींच कर

जीवन की हैं खुशियां बसी
इन छोटी छोटी बातों में
बीते सदा मुस्कुराते जिंदगी
इन पलों की हसीं यादों में

बेटे बहुओं से भरा परिवार
जीवनसाथी का है साथ
प्यारे प्यारे छोटू छोटी
खींच रहा हूं मैं सेल्फी
***अनुराधा चौहान***

Monday, October 22, 2018

लाई हूं कविता लिख कर

प्रीत के सुनहरे धागों में

पिरोए भावों के सुंदर मोती

एहसासों के रंग से रंग कर

माला गुंथी मैंने अलबेली

मन के भाव इसके मोती

वाणी हैे इसकी ज्योती

शब्दों का यह सुंदर संसार

साहित्य का आनंद अपार

सुंदर भावों से सजा रहे

यह सफर यूं ही चलता रहे

मन से भावों का झरना बह

नित नया गीत बनता रहे

फैले सुगंध इसकी चहुंओर

प्रीत का गीत बने यह डोर

मन के सुंदर भाव भर कर

लाई यह कविता लिख कर
***अनुराधा चौहान***

Sunday, October 21, 2018

मुनिया की रंगोली


रंग नहीं रंगोली के पास
एहसासों से सजाई हूँ
तुमने जो फेंके फूल पत्ते
उनको चुन-चुन कर लाई हूँ
बड़े चाव से मैंने सजाई
प्यारी प्यारी सुंदर रंगोली
सुंदर इसमें भाव भरे हैं
बहुत मनभावन मेरी रंगोली
लक्ष्मी मैया अबकी प्रसन्न हो
मेरे घर पर आएंगी
देकर आशीर्वाद मुझे भी
आप जैसा बड़ा बनाएंगी
फिर धूमधाम से में भी
हर बार दीवाली मनाऊंगी
रंग-बिरंगी रंगो से सजाकर
सुंदर रंगोली बनाऊंगी
अच्छे वाले कपड़े पहन
मैं भी दीवाली मनाऊंगी
बोलो दीदी अच्छी है न 
यह रंगोली जो मैंने बनाई है
देख कर खुश होगी मैया मेरी
मुनिया ने रंगोली बनाई है
***अनुराधा चौहान***

Saturday, October 20, 2018

थाम लो खुशियों का दामन


जब कोई साथ छोड़ दें तो
ज़िंदगी ठहर-सी जाती है
मन में उमड़ते विचारों की
अनंत गहराईयों में डूबकर
बीते पलों को यादों में
वक़्त भागता रहता है
मन विचारों में उलझा रहता है
यादों को सहेज कर
चलने का नाम ही ज़िंदगी है
चलो वक्त़ के साथ
रुकती नहीं है ज़िंदगी
किसी के भी लिए
खुशियों की तलाश कर
तन्हाइयों को छोड़ के पीछे
चुन लो वक्त़ से हसीं लम्हे
महका लो मन का आंगन
वक्त़ के साथ बदलना
जिंदगी की रीत है
स्वीकारना सच्चाई को
यही जीवन से प्रीत है
जो बीत गई सो बात गई
कल को लेकर क्या रोना है
जिंदगी को जियो जी भर के
कल जो होना है सो होना है
***अनुराधा चौहान***

Friday, October 19, 2018

सत्य को स्वीकार करें

बेवजह उठते सवालों से
जमाने में फैली बुराईयों से
अब हमको ही लड़ना है
आओ सत्य को स्वीकार करें
कलयुगी कंसों का नास करें
अब न राम आएंगे न ही कृष्णा
हमें ही मारना हैं मन की बुरी तृष्णा
सारे पापों की जड़ हैं यह
हमारे दुखों की वजह हैं यह
इन तृष्णाओं को मन से मिटाकर
मन में करके अटल इरादे
संघर्ष के पथ पर आगे बढ़ते
मन के रावण का करना विनाश
धर्म का रखना दामन थाम
झूठ कभी भी छुपता नहीं
सत्य कभी-भी झुकता नही
आओ मिलजुलकर साथ चलें
अच्छाई से बुराई पर वार करें
कर्त्तव्य की नई राह चुनें
अधर्म का करके हम विनाश
धर्म की करें जय-जयकार
सच्चाई पर अडिग रह कर
मन के रावण का कर दो विनाश
***अनुराधा चौहान***

Tuesday, October 16, 2018

मैं न वजह बनूं

मेरे साथी मेरे हमसफर
मेरा प्यार बनकर
तुम आए हो मेरी जिंदगी में
पूनम का चाँद बनकर
तुम माथे की बिंदिया
मेरा श्रृंगार हो
मेरे मुस्कुराहटों की
वजह भी तुम हो
तुमसे ही मेरी जिंदगी में
आई यह बहार है
मेरे अंधेरे जीवन का
तुम प्रकाश हो
अब राह कितनी भी लंबी
या कांटों भरी रहे
जब हाथ तेरा हो हाथ में
सफर यूं हीं चलता रहे
चाँद के संग जैसे जुड़ी है चाँदनी
साथ मेरा साए सा
तुझ संग जुड़ा रहे
तेरे दु:ख की कभी भी
मैं न वजह बनूं
मुस्कान तेरे चेहरे पे
खिलती सदा रहे
***अनुराधा चौहान***

Monday, October 15, 2018

तुझे मेरी याद आएगी


मेरी अश्कों के मोती 
बहते हैं बार-बार
तुझ संग प्रीत लगाकर  
मेरे दिल का है बुरा हाल
पुकारता है दिल तुझे
एक बार आकर मिल मुझे
देख ज़नाजा अपने प्यार का
टूट कर बिखरे सपनों का
झूठे वादे और इकरार का
बिखरती हुईं साँसों को 
अब भी है तेरा इंतज़ार
मचल रही है रूह जिस्म से
साथ छोड़ जाने को है बेकरार
बेबसी के बादल अब गहराने लगे
आकर एक बार मुझे तू लगाले गले
जिस्म से रूह अब होती जुदा़
आ बता दे मुझे हुई क्या खता
तू मिला न गिला है मुझे जिंदगी से
दूर होती हूँ अब मैं तेरी जिंदगी से
अश्क भी सूखते जिस्म भी छूटता
अब तुझ से यह नाता यहीं टूटता
प्रीत मेरी थी मेरे साथ ही मिट जाएगी
जान जाने पर तुझे मेरी याद आएगी
***अनुराधा चौहान*** 

Friday, October 12, 2018

सिमट रहे सबके मन

कोई धुन बनाऊं
या गीत कोई गाऊं
पर सुकून के पल
कहां से लाऊं
कोई कविता लिखूं
या कोई गजल
मन बैचेन रहे हरपल
रहूं धरती पर
देखूं आसमान
पर शांति के पल
नहीं आसपास
दिखावे के दंभ में
डूबा संसार
अपनों के लिए अपनों का
गुम होता प्यार
मोबाइल से चलते
अब सारे रिश्ते
पास होकर नहीं
रहते पास अपने
हकीकत में दुनिया
सिर्फ अपने में ही खोई
फसा मोबाइल में बेचारा मन
लगा जीवन में दीमक बन
सिमट रहें हैं सबके मन
कैसे कोई धुन बने सरगम
***अनुराधा चौहान***

Thursday, October 11, 2018

अजीब सी उलझन

 
जब भी बंद करूं आंखें
तेरा चेहरा नजर आता है
मुझको अब हर घड़ी
तेरा ख्याल आता है
बेकरार करती है मुझे
आंखों की कशिश तेरी
बिखर के न रह जाए
मेरे ख्बावों की यह लड़ी
पूछना चाहती हूं मगर
पूछ नहीं पाती हूं
खुद की उलझनों को
खुद ही सुलझाती हूं
यह वहम है मेरे दिल का
या तू भी मुश्किल में है
या कशिश मेरे प्यार की
तुझे भी महसूस होती है
हो अनजान तुम सच में
या फिर अनजान बनते हो
विचारों की गहराई में
डूबती-उतरती रहती हूं
क्या है तेरे मेरे दरम्यान
यह समझ नहीं पाती  हूं
अजीब सी उलझन में
खुद को फसा पाती हूं
***अनुराधा चौहान***

Wednesday, October 10, 2018

गरीब

वो हैं गरीब जरूर
पर स्वाभिमान से जीते
करते अथक परिश्रम
भरने को पेट अपना
है चाह व्यंजनों की
पर सूखी रोटी से पेट भरते
न बिस्तर का कोई रोना
पत्थर ही है बिछोना
तकलीफें सदा घेरे
फिर भी कदम न रुकते
धूप हो या तेज बारिश
निरंतर यह कर्म करते
रात की आगोश में वो
रोेज सपने नए बुनते
वो ढोते गिट्टी गारा
तब बिल्डिंगें संवरती
हमारी सुविधाओं के
यही महल खड़े करते
करने भविष्य उज्ज्वल
दिन-रात एक करते
फिर भी गरीबी इनकी
कभी पीछा नहीं छोड़ती है
बारिश में छत टपकती
आंखों को नम करती
देखा आंखों ने सपना
इक मकान हो अपना
पर मंहगाई कमर तोड़े
पर जीना कैसे छोड़े
बच्चों का पेट भरने में
पूरी जिंदगी गुजरती
***अनुराधा चौहान***

उलझनें यह कैसी


मची है खींचातानी
हर तरफ शोर है
कहीं नहीं है शांति
जीवन में बड़ा झोल है
उलझनें यह कैसी
सुलझती नहीं है
थक गई हूं मैं बहुत
एकांत चाहती हूं
जिंदगी में अब थोड़ी
शांति चाहती हूं
बदल गया है कुछ कुछ
बहुत कुछ वहीं है
नीतियां वही पुरानी
दम घोंटने लगी हैं
सबकी अलग डफ़ली
वही पुराना राग है
उलझा उसमें बेचारा
आज का आम इंसान है
देश के कर्णधारों अब तो
तस्वीर तुम सुधार लो
छोड़कर मतलबपरस्ती
इंसानियत उधार लो
कैसे बंद रखे हम
आंखों ओर कान को
बड़े व्यथित करते हैं
होते जो कांड रोज
उलझ गया है इंसान
इनकी मायावी चालों में
उलझनें भी ऐसी जो
सुलझती नहीं है
थक गई हूं मैं बहुत
एकांत चाहती हूं
जिंदगी में अब थोड़ी
शांति चाहती हूं
***अनुराधा चौहान***





जय माता दी

आया नवरात्रि का त्यौहार
बोलो मैया की जय-जयकार
सबके दुःख मिटाने वाली
दुर्गा है यह यही है काली
अंत भी इनसे आरंभ भी इनसे
यही है प्रकृति यही प्रलय भी
सौंदर्यवान करुणा की मूरत
नव रूपों की छटा अनुपम
असुर सदा तुमसे भय खाते
मां असुरों ने आज फिर घेरा
चारों ओर अंधकार घनेरा
अंधियारे को फिर से हटाने
मां आ जाओ फिर पाप मिटाने
रक्तबीज फिर जिंदा घूमते
बेटियों का जीना दूभर करते
जागो मां छोड़कर साधना
धरती का संताप हरो मां
फिर से तुम उद्धार करो मां
बोलो मिल कर सब जय जय मां
***अनुराधा चौहान***

Monday, October 8, 2018

नाम अमर कर दो

जीवन की इस डगर में
कहीं छांव कहीं धूप है
कहीं चुभते कांटे
कहीं महके फूल है
कदम संभल कर रखना
लक्ष्य से नहीं फिसलना
जीवन की आंधियों में
हिम्मत से काम लेना
कर्मों का सबके ऊपर
रहता है लेखा-जोखा
सदमार्ग से भटकने का
फल सबको है भुगतना
जीवन भी क्या वो जीना
जो अपने लिए जिए
करो सत्कर्म ऐसे
नाम अमर कर दो
कभी हौंसला डिगे तो
आंखों को बंद करना
जो शहीद हुए वतन पर
उनको तुम याद करना
दे गए हमें आजादी
आजाद वतन कर गए
वो हो गए कुर्बान
पर नाम अमर कर गए
जब तक यह जहां है
नाम अमर रहेगा
सम्मान में सदा उनके
यह शीश झुका रहेगा
***अनुराधा चौहान***✍

Friday, October 5, 2018

मन में हौंसला हो

जिद है छूनी ऊंचाईयाँ
मुश्किलों से फिर क्यों डरना
मन में हौंसला हो
संघर्ष की राह निकलना
खुद चलकर आए मंजिल
यह मुमकिन नहीं होता
मार कर ही हथौड़ा
पत्थर को तोड़ना है
हवा में किले बनाकर
नहीं जिंदगी संवरती
कुछ पाने की चाह है तो
सुख पीछे छोड़ना है
गर हौंसला बुलंद हो
फिर कदम नहीं रुकते
जीवन की आंधियों में
दिये कर्म के ही जलते
लड़ कर चुनौतियों से
पर्वत से राह निकलती
मन में हौंसला हो
जीने की चाह निकलती
***अनुराधा चौहान***




Thursday, October 4, 2018

भूख

भरी है तिजोरी
फिर भी पैसों के भूखे है
रिश्ते से घिरे हुए
फिर भी प्यार के भूखे है
करते हैं गलत काम
और सम्मान की भूखे है
कोई जिस्म की भूख में
मर्यादाएं तोड़ रहा
लगे हुए हैं सब अपनी
भूख मिटाने के वास्ते
पर इन सब से अलग
वो तोड़ती धूप में पत्थर
कुछ पैसों की आस में
क्योंकि उसके घर में थे
नन्हे मासूम बच्चे भूख
मिटाने की आस लिए
ताक रही मासूम आंखें
दरवाजे के बाहर
लेकर आती होगी मां
कुछ खाने को आज
***अनुराधा चौहान*

Wednesday, October 3, 2018

हौसले कैसे बुलंद हो

हौंसले पस्त
जीवन है त्रस्त
बंध गए हाथ
हो गए बेबस
मंजिल को छोड़
शून्य में ताकते
कुछ नहीं सूझता
भविष्य के वास्ते
जिधर देखो आस से
वो खंजर घोंपे पास से
भरे हैं पेट फिर भी बैठें
और खाने की आस में
जो खुद लुट गए हैं
उनसे और पाने की आस है
जब हाथ में कुछ नहीं
हौसला कैसे बुलंद हो
रास्ते में बिछे कांटे हो
सफर कैसे तय हो
अपनी अपनी कुर्सी
अपना अपना राग
कोई जाए खाई में
उनको इससे क्या काम
अपने वोटों की खातिर
नित नए प्रपंच की तलाश
कब तक जलेगा देश
मतभेदों की आग में
प्रतिभाएं कब तक
कुचलती रहेंगी
आरक्षण के बोझ तले
***अनुराधा चौहान***

मातृभूमि

यह मान हमारा है जान हमारी
मातृभूमि की है शान निराली
हैं गौरव हमें इस भूमि पर
हम इसकी संतानें हैं
जिसकी रक्षा की खातिर
वीरों ने दी कुर्बानी है
मानव रुप में श्रीराम,कृष्ण
इसकी गोद में पले बढ़े
गंगा यमुना सरस्वती
इसके सीने पर सदा बहे
लहराता विशाल सागर
कदम छूता इस भूमि का
खड़ा हिमालय सीना ताने
इस भूमि के आंगन में
हरे-भरे पेड़ों से शोभित
इस भूमि का आंचल है
भरी है सीने में इसके
शोर्य वीरों की शोर्य गाथा
सतयुग,त्रेता,द्वापर,कलयुग
सब युगों की यह जीवनदाता
अब कई विषैले नागों से
जहरीली होती भूमि है
नारी की पीड़ा से इसकी
बंजर होती छाती है
है लहुलुहान यह भूमि
मासूमों के लहु से
कब इसकी पीड़ा मिटेगी
अत्याचारियों के जुल्मों से
***अनुराधा चौहान***

Monday, October 1, 2018

कृष्णा

      🌸
राधा की प्रीत
जग में मशहूर
कृष्ण के संग
     🌸
मीरा दीवानी
गिरधर गोपाल
प्रीत में रंगी
     🌸
कान्हा के संग
गाए ब्रजमंडल
प्रीत संगीत
     🌸
प्रीत जगाए
श्याम की मुरलिया
गोपियों मन
    🌸
द्वारकाधीश
जगत मशहूर
सुदामा प्रीत
     🌸
मनमोहते
रंग इंद्रधनुषी
कृष्ण के संग
     🌸

श्याम सलोना
यशोमती नंदन
मनमोहना
    🌸
कान्हा के संग
झूमे ब्रजमंडल
नाचें उमंग
***अनुराधा चौहान***