हौंसले पस्त
जीवन है त्रस्त
बंध गए हाथ
हो गए बेबस
मंजिल को छोड़
शून्य में ताकते
कुछ नहीं सूझता
भविष्य के वास्ते
जिधर देखो आस से
वो खंजर घोंपे पास से
भरे हैं पेट फिर भी बैठें
और खाने की आस में
जो खुद लुट गए हैं
उनसे और पाने की आस है
जब हाथ में कुछ नहीं
हौसला कैसे बुलंद हो
रास्ते में बिछे कांटे हो
सफर कैसे तय हो
अपनी अपनी कुर्सी
अपना अपना राग
कोई जाए खाई में
उनको इससे क्या काम
अपने वोटों की खातिर
नित नए प्रपंच की तलाश
कब तक जलेगा देश
मतभेदों की आग में
प्रतिभाएं कब तक
कुचलती रहेंगी
आरक्षण के बोझ तले
***अनुराधा चौहान***
जीवन है त्रस्त
बंध गए हाथ
हो गए बेबस
मंजिल को छोड़
शून्य में ताकते
कुछ नहीं सूझता
भविष्य के वास्ते
जिधर देखो आस से
वो खंजर घोंपे पास से
भरे हैं पेट फिर भी बैठें
और खाने की आस में
जो खुद लुट गए हैं
उनसे और पाने की आस है
जब हाथ में कुछ नहीं
हौसला कैसे बुलंद हो
रास्ते में बिछे कांटे हो
सफर कैसे तय हो
अपनी अपनी कुर्सी
अपना अपना राग
कोई जाए खाई में
उनको इससे क्या काम
अपने वोटों की खातिर
नित नए प्रपंच की तलाश
कब तक जलेगा देश
मतभेदों की आग में
प्रतिभाएं कब तक
कुचलती रहेंगी
आरक्षण के बोझ तले
***अनुराधा चौहान***
वाह बहुत खूब
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय राजीव जी
Deleteवाहः अनुपम रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आदरणीय
Deleteआरक्षण के दुस्प्रभाव में कुचलती प्रतिभा!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर सखी ।
बहुत बहुत आभार कुसुम जी
Deleteबेहतरीन रचना अनुराधा जी
ReplyDeleteधन्यवाद सखी
Deleteयही तो आज की सबसे बड़ी समस्या हैं ,
ReplyDeleteबहुत रोचक लाइन्स लिखी हैं आपने -
भरे हैं पेट फिर भी बैठें
और खाने की आस में
धन्यवाद आदरणीय
Deleteबहुत सुंदर भाव। आज की परिस्थितियों पर लिखी खास रचना। सटीक शब्द।
ReplyDeleteअच्छा कटाक्ष है .
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय महेंद्र जी
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक ८ अक्टूबर २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत बहुत आभार श्वेता जी मेरी रचना को स्थान देने के लिए
Deleteनकरात्मक और सकारात्मक दोनों विचारधाराएँ चलती रहती है.
ReplyDeleteबदलने का हौसला है तो बदल
खुद से शुरू कर खुद बदल.
खुबसुरत रचना
धन्यवाद आदरणीय
Deleteवाह!!लाजवाब!!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार शुभा जी
Deleteआरक्षण भी हौसला पस्त कर रहा है....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...