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Wednesday, October 3, 2018

हौसले कैसे बुलंद हो

हौंसले पस्त
जीवन है त्रस्त
बंध गए हाथ
हो गए बेबस
मंजिल को छोड़
शून्य में ताकते
कुछ नहीं सूझता
भविष्य के वास्ते
जिधर देखो आस से
वो खंजर घोंपे पास से
भरे हैं पेट फिर भी बैठें
और खाने की आस में
जो खुद लुट गए हैं
उनसे और पाने की आस है
जब हाथ में कुछ नहीं
हौसला कैसे बुलंद हो
रास्ते में बिछे कांटे हो
सफर कैसे तय हो
अपनी अपनी कुर्सी
अपना अपना राग
कोई जाए खाई में
उनको इससे क्या काम
अपने वोटों की खातिर
नित नए प्रपंच की तलाश
कब तक जलेगा देश
मतभेदों की आग में
प्रतिभाएं कब तक
कुचलती रहेंगी
आरक्षण के बोझ तले
***अनुराधा चौहान***

20 comments:

  1. वाह बहुत खूब

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    1. धन्यवाद आदरणीय राजीव जी

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  2. वाहः अनुपम रचना

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    1. बहुत बहुत आभार आदरणीय

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  3. आरक्षण के दुस्प्रभाव में कुचलती प्रतिभा!!
    बहुत सुंदर सखी ।

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    1. बहुत बहुत आभार कुसुम जी

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  4. बेहतरीन रचना अनुराधा जी

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  5. यही तो आज की सबसे बड़ी समस्या हैं ,

    बहुत रोचक लाइन्स लिखी हैं आपने -


    भरे हैं पेट फिर भी बैठें
    और खाने की आस में

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  6. बहुत सुंदर भाव। आज की परिस्थितियों पर लिखी खास रचना। सटीक शब्द।

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  7. Replies
    1. धन्यवाद आदरणीय महेंद्र जी

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  8. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक ८ अक्टूबर २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. बहुत बहुत आभार श्वेता जी मेरी रचना को स्थान देने के लिए

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  9. नकरात्मक और सकारात्मक दोनों विचारधाराएँ चलती रहती है.
    बदलने का हौसला है तो बदल
    खुद से शुरू कर खुद बदल.

    खुबसुरत रचना

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  10. Replies
    1. बहुत बहुत आभार शुभा जी

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  11. आरक्षण भी हौसला पस्त कर रहा है....
    बहुत सुन्दर...

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