जमाने में फैली बुराईयों से
अब हमको ही लड़ना है
आओ सत्य को स्वीकार करें
कलयुगी कंसों का नास करें
अब न राम आएंगे न ही कृष्णा
हमें ही मारना हैं मन की बुरी तृष्णा
सारे पापों की जड़ हैं यह
हमारे दुखों की वजह हैं यह
इन तृष्णाओं को मन से मिटाकर
मन में करके अटल इरादे
संघर्ष के पथ पर आगे बढ़ते
मन के रावण का करना विनाश
धर्म का रखना दामन थाम
झूठ कभी भी छुपता नहीं
सत्य कभी-भी झुकता नही
आओ मिलजुलकर साथ चलें
अच्छाई से बुराई पर वार करें
कर्त्तव्य की नई राह चुनें
अधर्म का करके हम विनाश
धर्म की करें जय-जयकार
सच्चाई पर अडिग रह कर
मन के रावण का कर दो विनाश
***अनुराधा चौहान***
बेहतरीन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत सुंदर
धन्यवाद आदरणीय लोकेश जी
Deleteस्वयं से आह्वान। सार्थक रचना। शुभकामना।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteसच्चाई पर अडिग रह कर
ReplyDeleteमन के रावण का कर दो विनाश
सही कहा अनुराधा दी। जब तक हम मन के रावण का विनाश नहीं करेंगे तब तक रावण के पुतले को जलाने से कुछ भी हासिल नहीं होगा।
बहुत बहुत आभार ज्योती जी
Deleteसही सटीक कथन ।
ReplyDeleteत्रैता से आज तक सिर्फ़ पुतला जला रहे हैं हम प्रवृत्ति को बदने की कोई कोशिश नही ,न राम न कृष्ण कोई नही आने वाले बनना है तो खुद ही राम बनो ।
वाह।
बहुत बहुत आभार सखी आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए
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