बैठ राधिका यमुना तीरे
श्याम विरह में रोई।
भूल गए मोहे सांवरिया
सोच रही है खोई।
पनघट सूने सूनी गलियाँ
चुप हाथों के कँगना।
मुरलीधर ब्रज छोड़ गए हैं
सूने करके अँगना।
पंथ निहारूँ आस लिए मैं
बीज याद के बोई।
बैठ राधिका यमुना तीरे
श्याम विरह में रोई।
कनक धूप में कोमल काया
मोहन झुलसी जाती।
विरह वेदना समझे बदली।
तन को आ सहलाती।
मधुवन में श्रृंगार किए नित
पलक आस संजोई।
बैठ राधिका यमुना तीरे
श्याम विरह में रोई।
व्याकुल नैना खोज रहे हैं
भूला गोकुल ग्वाला।
सावन के हिंडोले सूने
सूना मन का आला।
पानी भरती खाली करती
मटकी फिर-फिर धोई।
बैठ राधिका यमुना तीरे
श्याम विरह में रोई।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार