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Friday, August 13, 2021

रिक्त पाती

 


चाँद टीका नभ सजाए

गीत गाए प्रीत के।

देख शरमाई धरा भी

धुन सुनाए रीत के।


चाँदनी भी मौन ठिठकी

बिम्ब देखा झील जो।

राह का पत्थर सँवरता

अब दिखाता मील जो।

चूड़ियाँ भी पूछती क्या

पत्र आए मीत के।

चाँद टीका……


कालिमा मुखड़ा छुपाए

भोर से शरमा रही।

रश्मियों को साथ भींगी

फिर पवन इठला बही।

बोलती रच दे कहानी

भाव लेकर नीति के।

चाँद टीका……


शब्द ढूँढे एक कोना

रिक्त अब पाती पड़ी।

लेखनी रूठी हुई है

आस कोने में खड़ी।

लेखनी को फिर मनालो

भाव लिख दो गीत के।

चाँद टीका……

अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित

चित्र गूगल से साभार



Sunday, August 8, 2021

बूँदों की थिरकन


अंक लपेटे बहता पानी 
भिगा रहा धरती आंचल
प्रीत मेघ की बरस रही है
अँधियारे का रच काजल।

नृत्य दिखाती चपला गरजे
चाँद देख यह छुप जाए।
बूँदो की थिरकन टपरे पर
ठुमरी सा गीत सुनाए।
और नदी इठलाती चल दी
कर आलिंगन सागर जल।
अंक लपेटे...

निर्झर छाती चौड़ी करके
गान सुनाते मनभावन।
पत्थर की मुस्कान खिली फिर
पुष्प महकते निर्जन वन।
मेघ दिवाकर का रथ रोके
लिए खड़ा किरणों का हल।
अंक लपेटे...

सौरभ लेकर झूम रही है
सोई थी जो पुरवाई।
साँसों का कंपन अब जागा
मन पे छाई तरुणाई।
वसुधा अब शृंगार सजा के
भूली बंजर था जो कल।
अंक लपेटे...
*अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित*
चित्र गूगल से साभार

Friday, August 6, 2021

वेदना के शब्द गहरे


 वेदना के शब्द गहरे
भीत सिसके सुन कहानी।
आँसुओं के बाँध तोड़े
पीर बहती अब पुरानी।

रंग सारे दूर भागे
जब कलम ने फिर छुआ था।
झूठ दर्पण बोलता कब
चित्र ही धुँधला हुआ था।
पूछती है रात बैरन
ढूँढती किसकी निशानी।

नित झरोखे झाँकती सी
चाँदनी फिर आज पूछे।
अंक अँधियारा लपेटी
बात क्या है राज पूछे।
सिलवटें हर रात रोती
भोर आए कब सुहानी।

दे रही दस्तक हवाएँ
शीत अब गहरी हुई है।
फिर कुहासा खाँसता सा
अंग में चुभती सुई है।
आग अंतस की जले अब
डालता फिर कौन पानी।
*अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित*
चित्र गूगल से साभार