वेदना के शब्द गहरे
भीत सिसके सुन कहानी।
आँसुओं के बाँध तोड़े
पीर बहती अब पुरानी।
रंग सारे दूर भागे
जब कलम ने फिर छुआ था।
झूठ दर्पण बोलता कब
चित्र ही धुँधला हुआ था।
पूछती है रात बैरन
ढूँढती किसकी निशानी।
नित झरोखे झाँकती सी
चाँदनी फिर आज पूछे।
अंक अँधियारा लपेटी
बात क्या है राज पूछे।
सिलवटें हर रात रोती
भोर आए कब सुहानी।
दे रही दस्तक हवाएँ
शीत अब गहरी हुई है।
फिर कुहासा खाँसता सा
अंग में चुभती सुई है।
आग अंतस की जले अब
डालता फिर कौन पानी।
*अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित*
चित्र गूगल से साभार
Bahut sundar kavita.
ReplyDeleteहार्दिक आभार नितिश जी।
Deleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteहार्दिक आभार ओंकार जी।
Deleteवाह।
ReplyDeleteहार्दिक आभार शिवम् जी।
Deleteबहुत बढ़िया लेखन...।
ReplyDeleteहार्दिक आभार संदीप जी।
Deleteबहुत सुंदर नव गीत सखी , अभिनव व्यंजनाओं सहित ।
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई।
सुंदर सृजन , बहुत बधाइयाँ ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी।
ReplyDeleteहार्दिक आभार भारती जी।
ReplyDeleteसिलवटें हर रात रोतीं, भोर आए कब सुहानी👌🏼👌🏼वाहह दीदी
ReplyDeleteहार्दिक आभार पूजा।
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