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Friday, August 6, 2021

वेदना के शब्द गहरे


 वेदना के शब्द गहरे
भीत सिसके सुन कहानी।
आँसुओं के बाँध तोड़े
पीर बहती अब पुरानी।

रंग सारे दूर भागे
जब कलम ने फिर छुआ था।
झूठ दर्पण बोलता कब
चित्र ही धुँधला हुआ था।
पूछती है रात बैरन
ढूँढती किसकी निशानी।

नित झरोखे झाँकती सी
चाँदनी फिर आज पूछे।
अंक अँधियारा लपेटी
बात क्या है राज पूछे।
सिलवटें हर रात रोती
भोर आए कब सुहानी।

दे रही दस्तक हवाएँ
शीत अब गहरी हुई है।
फिर कुहासा खाँसता सा
अंग में चुभती सुई है।
आग अंतस की जले अब
डालता फिर कौन पानी।
*अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित*
चित्र गूगल से साभार

14 comments:

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    1. हार्दिक आभार नितिश जी।

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  2. सुन्दर प्रस्तुति

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    1. हार्दिक आभार ओंकार जी।

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    1. हार्दिक आभार शिवम् जी।

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  4. बहुत बढ़िया लेखन...।

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    1. हार्दिक आभार संदीप जी।

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  5. बहुत सुंदर नव गीत सखी , अभिनव व्यंजनाओं सहित ।
    बहुत बहुत बधाई।

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  6. सुंदर सृजन , बहुत बधाइयाँ ।

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  7. हार्दिक आभार सखी।

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  8. हार्दिक आभार भारती जी।

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  9. सिलवटें हर रात रोतीं, भोर आए कब सुहानी👌🏼👌🏼वाहह दीदी

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    1. हार्दिक आभार पूजा।

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